टाइटल पढ़ के ही आपको आधी बात समज में आ गई होगी फिर भी…
लगभग हम सभी पूजा करते समय मंदिर में जो केसर पुजारीजी बना के रखते हैं वो ही उपयोग करते हे, हाँ बहोत से लोग ऐसे भीं हैं, जो स्वद्रव्य का उपयोग करते हैं
तो अपना ही केसर उपयोग में लेते हैं।
लगभग हम हर जगह पोस्टर देखते हे की जरूरत हो उतना ही केसर लेवे, बिगाड़ ना करे, केसर बचाये, केसर की व्यथा, केसर की आत्मकथा
क्या हमने कभी सोचा ऐसे पोस्टर क्यों लगाये जाते हैं?
मुल रूप से केसर का उपयोग रंग आये इस लिए किया जाता हैं और पूजा का नाम हैं चंदन पूजा- यानि चंदन को घिसा जाता हे पूजा के लिए और उसमे केसर का रंग मिलाया जाता हैं,
ताकि परमात्मा को उत्तम द्रव्य से पूजा हो।
हम पूजा करने जाते हैं तो पूरी कटोरी भर के केसर लेते हे जब की प्रतिमाजि होती हे सिर्फ 4 या 5 अब 5 प्रतिमा के लिए कितना केसर लेना चाहिए इसकी समज तो हमें होनी ही चाहिए।
फिर भी हम केसर लेते हैं बहोत सारा उसके पीछे का गणित देखे।
एक कटोरी भर के केसर ले के हम पूजा करने जाते हैं सब से पहला नियम हैं, कि तीसरी ऊँगली अनामिका का सिर्फ ऊपर का हल्का सा भाग कटोरी में डालना हैं, नाख़ुन पर केसर का स्पर्श न हो और परमात्मा के सिर्फ 9 अंगो की पूजा करनी हैं।
अगर 5 प्रतिमा हैं तो सिर्फ आधी कटोरी केसर से काम चल सकता हैं, लेकिन हम तो ऐसे वैज्ञानिक हैं जिन्होंने प्रतिमाजी पे न जाने कितने नए पूजा करने के अंग ढूंढ निकाले हैं। कही हाथ के बिच, कही पीठ पे, कही पाँव के बिच, कही कान पे, कही पबासन पे तो कही लांछन पे। और इतनी सारी जगह पूजा करने वाले भी परमात्मा की 9 अंगी पूजा तो ठीक से करते भी नहीं हैं। बहोत जगह देखा हैं की शिखा पे पूजा करने के बाद सीधा गले पे पूजा होती हैं बिच में भाल को तो भूल ही जाते हैं। बार-बार पूजा करना भी उचित नहीं है।
केसर का उपयोग हो वो जरुरी हैं, लेकिन केसर का अपव्यय नहीं होना चाहिए। देव द्रव्य हैं, इसका उपयोग सन्मान से करना हैं। आपको तो पता ही हैं चंदन व केसर कितने महंगे आते हैं। जीतना केसर कम और सुआयोजित उपयोग होगां उतना देव द्रव्य बचेगा। कई बार देखा गया हैं, की देव द्रव्य कम पड़ने की वजह से मंदिर के कुछ काम रुक जाते हैं। और कभी-कभी तो इस कारण से आशातना भी होती हैं जैसे की आजकल लाइट का उपयोग बढ़ गया हैं। आज कल हर जगह लाइट ही चलती हैं, परमात्मा के जिनालय में लाइट का उपयोग होना ही नहीं चाहिए। आप खुद सोचिये आपको 5 घँटे एक रूम में बिठाया जाय और आपके सामने लाइट रख दी जाय तो आप कब तक सहन कर पाओगे? 15 मिनट में खड़े हो के बोलोगे की लाइट बंध करो तो ज़रा। सोचिये क्या हमारे परमात्मा को हम सिर्फ प्रतिमा मानते हैं? क्या उन्हें जागृत नहीं मानते? क्या उन्हें दिन रात ऐसी लाइट के बिठाना ठीक हैं? लेकिन हर जगह घी के दिए नहीं लगा सकते क्योंकिं वहा पैसे ज़्यादा जा रहे हैं, देव द्रव्य कम पड जाता हैं। इस लिए हमें सोचना हैं की जरूरत से ज़्यादा केसर न ले ताकि पैसो की बचत हो। हाँ, हम महा भक्तिवान हैं कभी किसी जिनालय को तकलीफ नहीं आने देंगे लेकिन हमें देव द्रव्य को भी बचाना हैं,
उतना ही पैसा हम जहा जरूरत हैं वहा लगा सकते हैं।
हमारी ही गलतियो का परिणाम हैं की तीर्थ में केसर का इतना व्यय होने लगा की प्रतिमाजी पे केसर का कटोरा भर के फेकने में आ रहा हैं। दुःख तो तब हुआ की राजस्थान के ही एक छोटे गाँव में जहा करीब 100 घर हैं और वहा जिनालय में इतना केसर व्यय होता हैं की संपूर्ण प्रतिमा केसर से युक्त हो जाते हैं, जब देखो तब केसर ही केसर रहता हैं, संपूर्ण प्रतिमा पे और लोग मिनी केसरियाजी बोल के गर्व लेते हैं। हमारी भक्ति हैं या अज्ञानता पता नहीं परंतु क्या हमें केसरियाजी बोल के हमारे तीर्थ का गर्व लेना चाहिए? जहा केसर प्रभु पर फेका जाए और
अपव्यय हो उसको सुधारने की जरूरत हैं।
देखने में आता हैं की केसर से पूजा इतनी होती हैं की परमात्मा की सिर्फ आँखे दिखे, बाकि पूरा शरीर केसर से लथपथ होता हैं। हम बस लाभ लेने का सोच के ये ध्यान नहीं रखते की आशातना कर रहे हैं। पहले परमात्मा को साफ़ कर ले फिर पूजा करे लेकिन हम अधिरे बनते हैं और जो भाग्यशाली परमात्मा को साफ़ कर रहे हो उन्हें कोषते हैं या
फिर बाहरी मुस्कराहट दिखा के मन में गालिया देते हैं।
कुछ लोग तो ऐसा करते हैं कि पूरी कटोरी भरी फिर उसमे कुछ केसर बचा तो कटोरी ही रख देते हैं या किसी को हाथ में पकड़ा कर बोलते हे की “साफ़ केसर हैं, वापर सकते हैं” अब एक सवाल हैं कि घर में जमाई आये तो क्या उनको आधा गुलाब जामुन दे के कहेंगे की बस मेने आधा ही खाया हैं बाकी इसमें प्रॉब्लम नहीं हैं वापर सकोगे। कैसी हालत होगी? जब जमाई का इतना सन्मान तो वो तो तीन भुवन के नाथ हैं उन्हें ऐंसी कटोरि से पुजोगे?
पहले से शिस्त का पालन कर के, जरूरट हो उतना केसर क्यों ना ले?
छोटी से छोटी बचत करना जरुरी हैं, क्योंकि देव द्रव्य का उपयोग सोच समज के करना हैं। ये कंजुसाइ नहीं हैं लेकिन एक बचत हैं। हाँ परमात्मा के कार्य में बचत देखना गलत हैं सब उत्कृष्ट होना चाहिये लेकिन गलत उपयोग करना देव द्रव्य का बिगाड़ हैं। साथ ही जो केसर हैं, वो देव द्रव्य का हैं उसका उपयोग कहा कर सकते हैं? सिर्फ परमात्मा के लिए। हम सब बिना सोचे विचारे पबासन, लांछन, अधिष्ठायक देवी-देवता को केसर से पूजा करते हैं। क्या ये सही हैं? बस एक छोर चल दिया तो हम सब ने ये शुरू कर दिया।
आगे समय ऐसा भी आएगा की भंडार पे जो लक्ष्मी देवी हैं वहा भी केसर का टिका लगने लगेगा। बस जहा से हमारी सांसारिक मांगे पूरी हो वहा चल पड़े। ऐसी नादानी क्यों? क्या सोच समज के क्रिया करनी नहीं चाहिये? देव द्रव्य का उपयोग सिर्फ परमात्मा के लिए हो। देवी-देवता जिनालय में रक्षक के रूप में होते हैं वे खुद प्रभु की पूजा करते हैं और हम उन्ही प्रभु के जिनालय में देवी देवता की पूजा। थोडा सा विचार कीजिये जिसका घर हैं उसके घर में किसी और की पूजा करना उचित हैं? एक तरफ हम जिनालय में साधू साध्वीजी को मस्तक और हस्त से भी वंदन नहीं कर सकते और दूसरी और देवी-देवता की पूजा करते हैं।
हमें एक-एक बात सोचनी हैं की कैसे सही आराधना की जाए।
जो भी धर्म क्रिया मोक्ष मार्ग में ले जाये वो ही करना जरुरी हैं।
यह आर्टिकल, केसर के आंसू
प्रयोजन- एक जगह शासनपति श्री महावीर की प्रतिमाजी की दोनों आँखों से बार बार केसर की बुँदे सरकती हुई गाल तक आती हुई दिखती हैं।
यही बात से ये आर्टिकल लिखा गया हैं।
-केसर के आंसू-