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आत्मानुभव का उपाय

जब तक बौद्धिक ज्ञान अनुभव में न बदले, तब तक वह ज्ञान परमशांति नहीं दिला सकता ।

अब सवाल खड़ा होता है कि आत्म अनुभव किस तरह मिल सकता है ?

सर्वप्रथम यह निर्णय करना चाहिए कि देह से आत्मा अलग है।शरीर में से आत्मा निकल जाती है और तुरंत ही शरीर निष्चेष्ट बन जाता है।

यह आत्मा अथवा चेतन्य क्या है? कैसा अचिन्त्य सामर्थ्यवाला है , इसकी महिमा आत्मा में बार-बार बसानी चाहिए।

अन्य प्रकार से भी चेतन्य की महिमा ह्रदय में बसा सकते हैं। पचास साठ या अस्सी वर्ष के जीवन दरम्यान शरीर में कितने-कितने परिवर्तन होते हैं ?कहां बचपन का सुकौमल शरीर ! और कहां उम्र बढ़ते अंतिम वृद्धावस्था का जर्जरित शरीर! फिर भी आत्मा में लेश मात्र परिवर्तन होता नहीं। आत्मा का ज्ञान स्वभाव एवं सुख – दु:ख को अनुभव करने का स्वभाव उसी रूप में रहता है तथा यह सोचना चाहिए कि ब्राह्म रूप का ज्ञान करना हो तो चक्षु इंद्रिय से होता है, प्रकाश न हो तो वह भी नहीं हो सकता।

वस्तु का वही ज्ञान मन में करना हो तो ब्राह्म प्रकाश की किसी भी प्रकार की मदद बीना भीतर के आत्मप्रकाश द्वारा हो सकता है।

भीतर का प्रकाश अखंड रूप से चलता रहता है ।भीतर की आत्मा प्रकाशित न हो तो मन में किसी भी वस्तु का दर्शन नहीं हो सकता। सूर्य के प्रकाश से भी उस आत्मप्रकाश का महत्व ज्यादा समझना चाहिए।

स्वप्न में जो समस्त सृष्टि दिखती है वह आत्मप्रकाश में ही दिखती है । क्योंकि आत्मप्रकाश बिना अंदर कोई लालटेन ,बिजलि या सूर्य का प्रकाश नहीं है और प्रकाश के बिना किसी वस्तु का दर्शन नहीं हो सकता यह निश्चित है । मन में यह प्रकाश आया कहां से ? यह आत्मा का प्रकाश है और अखंड रूप से बहता रहता है।

इन तीनों प्रकार की अद्भुतता का बार-बार चिंतन करने से ब्राहा विषयों का आकर्षण कम हो जाएगा और आत्मा का आकर्षण दिन प्रतिदिन बढ़ता जाएगा। आत्मानुभव बिना परमशांति नहीं मिल सकती, यह एक अखंड सत्य है। इस अनुभव को प्राप्त करने के लिए आत्मा का अखंड स्मरण महत्व का उपाय है।

शरीर के भीतर आत्मा जैसी कोई अपूर्व वस्तु रही हुई है, ऐसे निश्चित प्रकार के ज्ञान से यह स्मरण अखंड बना सकते हैं। अभ्यास से यह हो सकता है।

मन में पहले दृढ़ संकल्प करना चाहिए कि मुझे आत्मा का अखंड स्मरण करना है! मन में कुछ ना कुछ विचार चलते रहते हैं। विचारों का चक्र अटकता ही नहीं । उसके साथ विविध स्मृतियां भी आती रहती है।

इस सभी अनावश्यक विचारों और अनावश्यक स्मृतियों को हम प्रयत्न पूर्वक, अभ्यास के बल से अटका सकते हैं और उनके स्थान पर आत्म स्मृति को अपने मन में प्रवेश करवा सकते हैं। सिर्फ लक्ष्य निश्चित कर लेना चाहिए कि मुझे आत्मा का स्मरण अखंड रूप से रखना है।

ऐसा निश्चय करने पर भी आत्मा का अखंड स्मरण स्थिर रहेगा, ऐसा नियम नहीं है, बारंबार स्मरण होगा, मन में आत्मस्मृति के बदले अन्य अनेक स्मृतिया आएगी । अनेक विचार चलेंगे, फिर भी एक बार दृढ़ निश्चय किया हो तो आज नहीं तो कल अवश्य एक दिन सफलता मिलेगी।

मन में आ रही अन्य स्मृतियों और विचारों को रोकने का प्रयत्न अखंड रूप से चालू रहेगा । तो किसी -न-किसी दिन सफलता के शिखर पर जरुर पहुंचेंगे ।अखंड आत्मस्मृति को नहीं स्पर्श कर सकते ,फिर भी दिन प्रतिदिन उसके ऊपर प्रेम बढ़ता जाएगा और अंत में आत्मा का स्पर्श, आत्मा का अनुभव हुए बिना नहीं रहेगा।

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