राम: दीक्षा लेकर उसी भव में “सिद्धपद” की साधना करते हुए,
केवल ज्ञान पाकर “मोक्ष” गएl
सीता: दीक्षा लेकर घोर तप करके 12 वे देवलोक में
“प्रतिंद्र” के रूप में उत्पन्न हुई
देवलोक में रहते हुए श्री राम को ध्यानमग्न देखा, उनके साथ धर्मचर्चा करने की इच्छा जागी देवलोक से सीता का रूप धारण करके उन्हें उपसर्ग किया किन्तु श्री राम विचलित नहीं हुए राम ध्यान में आगे बड़े और केवल ज्ञान पायाl
तब सीता ने माफ़ी मांगी और लक्ष्मण और रावण के बारे में जानने की इच्छा प्रकट की,
श्री राम ने बताया कि लक्ष्मण चौथी नरक में है और रावण तीसरी नरक में हैंl
चूँकि कोई भी देव तीसरी नरक से आगे नहीं जा पाता इसलिए देव (सीता) ने तीसरी नरक जाकर रावण को प्रतिबोध दियाl
आगे के भव:
1. सीता के कारण लक्ष्मण और रावण दोनों नरक से निकलकर मनुष्य और तिर्यंच के अनेक भव करते हुवे हर बार एक दूसरे को मारेंगेl इसलिए बार-बार नरक में जाएंगेl अंत में नरक से निकलकर (कर्म भोगकर) सगे भाई बनेंगे जिनमें अत्यंत प्रेम होगाl
2. फिर देवलोक में उत्पन्न होंगेl
3. फिर साथ में मनुष्य का जन्म लेंगेl
4. फिर देवलोक में,
5. फिर साथ में राजपुत्र (मनुष्य का जन्म लेंगे) बनेंगे दीक्षा लेंगेl
6. फिर साथ में 7 वे देवलोक में,
7. अब सीता का जीव भरत क्षेत्र में चक्रवर्ती बनेगा, रावण और लक्ष्मण के जीव उनके इंद्ररथ और मेघरथ नाम के पुत्र बनेंगेl
8. तीनों मरकर अनुत्तर विमान में अहींद्र होंगेl
9. वहा से निकलकर रावण तीर्थंकर और सीता का जीव उनकी माता का बनेगा,
लक्ष्मण का जीव घातकी खंड में चक्रवर्ती के साथ “तीर्थंकर” बनेगाl
विशेष:
जिस रावण ने कुबेर की पट्टरानी उपरंभा को वापस भेजा
और वही शीलवान सीता के रूप के आगे हार गयाl
कर्म की कैसी विचित्रता हैl
हम कर्म कैसे कर रहे हैं, क्या अब भी उन्हें समझना नहीं चाहेंगे?