Archivers

कल नहीं आज

हे अबोध,

जैन वाङ्मय का एक सुन्दर सूक्त है:-

।। णत्थि कालस्सणागमो ।।

मृत्यु के लिए कोई भी समय अनवसर नहीं होता । वह कभी भी, कहीं भी और किसी की भी हो सकती है । इस आधार पर यह बात स्पष्ट हो जाती है कि मृत्यु दुनिया की एक नियति है, यूनिवर्सल लॉ है, जिसे कभी भी किसी के द्वारा टाला नहीं जा सकता ।

कितना ही बड़ा शक्तिशाली क्यों न हो, देवता भी क्यों न हो, मृत्यु का अपवाद कोई नहीं हो सकता । मृत्यु एक बालक की भी हो सकती है, युवक की भी हो सकती है और अवस्था प्राप्त व्यक्ति की तो होती ही है । इस दुनिया का नियम है कि मौत हर प्राणी की होती है ।

वृक्ष के सूखे पत्तों से नीचे गिरते देखकर नई कोंपलें उनका उपहास करने लगी । तब उन पत्तों ने कहा जरा ठहरो, जो हमारे पर बीती है, वहीं तुम्हारे पर बीतने वाली है –

पान पड़ता देखकर,
हंसीज कुंपलियाहं ।
मो बीती तुझ बीतसी,
धीर बापडियाह ।।

जीवन के दो बिन्दु है, आदि बिन्दु है जन्म और अंतिम बिन्दु है – मृत्यु । जन्म और मृत्यु के बीच में जीवनकाल है । यदि इसका सही उपयोग किया जाए तो यह व्यक्ति के लिए बहुत काम का है । इस जीवनकाल में जो व्यक्ति आत्म-कल्याण का काम करता है, परकल्याणकारी काम करता है, दूसरों की सेवा करता है, सबके हित का चिंतन करता है, प्राणीमात्र के प्रति प्रेम, मैत्री और करुणा के भाव रखता है, स्वयं कष्ट झेलकर भी दूसरों का हित करता है, उसका जीवन धन्य बन जाता है और उसकी मृत्यु भी धन्य बन जाती है ।

जागरूकता से कर्तव्य-पालन करने की प्रेरणा देते हुए कहा –

एक सेठ को दूसरे गांव जाना था । उसने नौकरों को समझाते हुए कहा जिसके जिम्मे जो काम दिया है, मेरे जाने तक पूरा हो जाना चाहिए । दूसरे सभी नौकर सेठ के जाते ही अपने काम में लग गए किन्तु एक ने सोचा अभी तो सेठ गया ही है, आने में समय लगेगा, बाद में कर लूंगा । संयोग से सेठ अनुमान से जल्दी आ गया । जिन्होंने अपना कार्य पूरा कर रखा था, उनसे वह बहुत प्रसन्न हुआ । जिसने नहीं किया, उसे गफलत समझकर छुट्टी दे दी गई ।

इस दृष्टांत का मर्म समझाते हुए बताया हर मनुष्य के जीवन में अकल्पित परिस्थितियां बनती रहती है, घटनाचक्र के थोड़े से घुमाव से उसके विचार धरे रह जाते है, इसलिए कर्तव्य के पालन में एक क्षण भी देर नहीं करनी चाहिए ।

कल नहीं आज ‘ यह जीवन का स्वर्णिम सूत्र है, जागरूकता प्रदान करने वाला सूत्र है

इस मृत्यु का कोई भरोसा नहीं होता यह कहीं भी, कभी भी व्यक्ति के पास सकती है इसलिए आदमी को सतत् जागरूक रहना चाहिए बीता हुआ समय पुन: नहीं मिलता

अत: क्षण-क्षण का उपयोग करना चाहिए ।

घमंड से पतन की और
November 8, 2016
श्री गौतम स्वामी
November 9, 2016

Comments are closed.

Archivers