हे प्रभु यह शरीर धर्म साधना के लिये उत्कृष्ट साधन है ! मैने इस शरीर के मोह में पड़कर तप संयम की आराधना नहीं की.
अठाई, वर्षीतप आदि बड़ी तपस्या कब करूंगा ? आहार की संज्ञा से कैसे मुक्त बनूंगा ? कर्म निर्जरा कैसे करूं ? है प्रभु मुझे शक्ति दो…
हे प्रभु ! अनंत उपकार है आपके, जो निगोद से निकाल कर लाये है हमको, यहां आने के बाद आपकी शरण नहीं मिली, आप बिना मेरा जीवन शुन्य है इस लिये हे प्रभु मेरे मन मंदिर में आ जाओ. मुझे आपकी शरण दे दो प्रभु !
हे प्रभु मेरी माता श्री वीतराग प्रभु की वाणी मॉ जिनवाणी है. मोक्षमार्ग बताने वाले सभी संत भगवंत मेरे आराध्य गुरू है. साधर्मि सभी मेरे मित्र बंधु है. इसके अलावा सभी मोह जाल है.
हे प्रभु !इन सब से मुझे दूर रखना ऐसी बिनती है मेरी.
हे प्रभु ! अनंत प्रबल पुण्य के प्रभाव से जैन कूल, जिनधर्म मिला. इंद्रीयां परिपुर्ण मिली. ऐसे दुर्लभ धर्म की प्राप्ति होने पर मै क्षण मात्र भी प्रमाद ना करूं ! मै वह दुर्लभ बोधि को प्राप्त करूं .हे प्रभु मुझे ऐसी शक्ति दो.
हे प्रभु ! शांति, क्षमा, शम आदि नामों ने इस गुण सूत्रों में समकित का प्रथम लक्षण कहा गया है. यह शम गुण या समकित गुण धर्म का प्रथम गुण होकर, अंतिम ज्ञान देनेवाला, कैवल्य प्राप्त करानेवाला है. अतः हे प्रभु मेरे अंदर समता गुणों से मुझे परिपूर्ण कर दो. जिससे भव बंधन से छूट जांऊ.