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मुझे माफ़ कर दों माँ

शख्सियत ए लख्ते-जिगर कहला न सका,
जन्नत के धनी पैर कभी सहला न सका।

दुध पिलाया उसने छाती से निचोड़ कर
मैं निकम्मा, कभी 1 ग्लास पानी पिला न सका।

बुढापे का सहारा हूँ, अहसास दिला न सका
पेट पर सुलाने वाली को मखमल पर सुला न सका।

वो भूखी सो गई बहू के डर से एकबार मांगकर,
मैं सुकुन के दो निवाले उसे खिला न सका।

नजरें उन बुढी आंखों से कभी मिला न सका,
वो दर्द सहती रही में खटिया पर तिलमिला न सका।

जो हर जीवनभर ममता, के रंग पहनाती रही मुझे
उसे ईद/होली पर दो जोड़ी कपडे सिला न सका।

बिमार बिस्तर से उसे शिफा, दिला न सका,
खर्च के डर से उसे बड़े अस्पताल, ले जा न सका।

माँ के बेटा कहकर दम तौडने बाद से अब तक सोच रहा हूँ,
दवाई इतनी भी महंगी न थी कि मैं ला ना सका।

माँ तो माँ होती हैं भाईयों माँ अगर कभी गुस्से मे गाली भी दे तो उसे उसकी
दुआ समझकर भूला देना चाहिए।

यही जिंदगी है
July 14, 2016
मेरे पति
July 15, 2016

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