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आर्यमहागिरी- आर्य सुहस्ति सूरी – भाग 4
भिखारी ने सोचा , ऐसे भी मैं हूँ, अतः व्रत ग्रहण करने से मुझे भोजन मिलता हो तो यह व्रत भी मुझे स्वीकार है। इस प्रकार विचार कर वह दीक्षा स्वीकार करने के लिए तैयार हो गया। तत्पश्र्चात् मैंने उसे दीक्षा प्रदान कि। दीक्षा स्वीकार करने के बाद उसे मोदक आदि खिलाए गए। स्वादिष्ट भोजन की प्राप्ति होने के कारण…
आर्यमहागिरी- आर्य सुहस्ति सूरी – भाग 3
आचार्य भगवंत ने कहा, जिनधर्म की आराधना का सुपक्व फल मोक्ष और अपक्व फल देवलोक आदि के सुख है। पुनः राजा ने पूछा , प्रभो! सामायिक का क्या फल है? आचार्य भगवंत ने कहा , हे राजन्! अव्यक्त सामायिक का फल राज्य आदि की प्राप्ति है। संप्रति महाराजा ने आचार्य भगवंत की बात का हृदय से स्वीकार किया। तत्पश्र्चात् राजा…
आर्यमहागिरी- आर्य सुहस्ति सूरी – भाग 2
उसके बाद उस श्रेष्ठि ने अपने परिवार जनों को कहा, ऐसे त्यागी मुनियो को अत्यंत ही भक्ति और बहुमान पूर्वक दान देना चाहिए। ऐसे त्यागी मुनियो को दान देने से महान लाभ होता है; अतः ऐसे महात्माओं के आगमन पर खूब भक्ति करनी चाहिए। दूसरे दिन आर्य महागिरी भिक्षा के लिए जब उस श्रेष्ठि के घर पधारे, तब अत्यंत ही…
आर्यमहागिरी- आर्य सुहस्ति सूरी – भाग 1
आर्य स्थूलभद्र स्वामी के आर्य महागिरी और आर्य सुहरित नाम के दो प्रधान शिष्य थे। वे दोनों दशपूर्वी थे। पृथ्वीतल पर विचरण कर वे अनेक भव्यजीवों को प्रतिबोध देते थे। अपनें धर्मोपदेश द्वारा आर्य महागिरी ने अने शिष्यों को तैयार किया था। उस समय जिनकल्प का विच्छेद हो चुका था, फिर भी जिनकल्प की तुलना करने के लिए उन्होंने अपनें…