Archivers

युगप्रधान वज्रस्वामी – भाग 14

रुक्मिणी ने कहा, मैं अपना प्रयत्न करूंगी। प्रयत्न करने पर भी सफलता नहीं मिली तो मैं भी दीक्षा अंगीकार कर लूंगी।

वज्रस्वामी अपने विशाल परिवार के साथ विहार करते हुए पाटलिपुत्र नगर में पधारे। वहा के राजा ने भव्य महोत्सव पूर्वक आचार्य भगवन्त का नगर प्रवेश कराया।

अनेक साधुओं के रूप में समानता होने से राजा वज्रस्वामी को पहचान नहीं पाया। अन्य साधुओ के द्वारा वज्रस्वामी का परिचय प्राप्त होने पर राजा ने अत्यंत ही भावपूर्वक वज्रस्वामी को वंदन प्रणाम किया। तत्पश्चात वैराग्यपूर्ण धर्मदेशना दी।

वज्रस्वामी के आगमन को सुनकर रुक्मिणी ने लज्जा का परित्याग कर अपने पिता को कहा, में इस जीवन में एकमात्र व्यक्ति के साथ ही लग्न करना चाहती हूं, यदि मेरी इच्छा पूर्ण नहीं होगी तो मैं मृत्यु को वर लूंगी।

पुत्री की इस बात को सुनकर धन श्रेष्ठी , दिव्य आभरण एवं अलंकारों से अलंकृत अपनी पुत्री को लेकर वज्रस्वामी के पास आया।

लोक मुख से वज्रस्वामी के अद्भुत रूप लावण्य आदि गुणों का वर्णन सुनकर धन श्रेष्ठि अत्यंत ही खुश हो गया। और सोचने लगा, अहो! मेरी पुत्री धन्य है जो इस प्रकार के श्रेष्ठ व रूपवान वर को वरना चाहती है।

तत्पश्चात धन श्रेष्ठी ने वज्रस्वामी को वंदन किया……….. और धर्मोपदेश सुनने के बाद हाथ जोड़कर विनती करते हुए बोला, मेरी यह पुत्री आप में आसक्त हैं,; अतः इसके साथ पाणिग्रहण कर मुझे कृतार्थ करें। इस कन्या के पाणिग्रहण के प्रसंग में मैं एक करोड़ स्वर्ण प्रदान करूंगा।

धन सेठ के इन शब्दों को सुनकर वज्रस्वामी ने कहा, संसार के भोग सुख नदी के जल तरंग तथा हाथी के कान की भांति अत्यंत ही चपल व चंचल है। संसार के भोग सुख तो पूण्य रूपी लक्ष्मी में रोग पैदा करने वाले हैं। स्त्री और लक्ष्मी का दान तो खूब सोच-विचार कर देना चाहिए। मेरा शरीर तो हाड़-मांस, रुधिर व चरबी आदि से पूरा-पूरा भरा हुआ है उसमे आसक्त होना तो सिर्फ मूर्खता है

युगप्रधान वज्रस्वामी – भाग 13
June 11, 2018
युगप्रधान वज्रस्वामी – भाग 15
June 11, 2018

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Archivers