भारत देश!
पाटलीपुत्र नगर!!
नौवां नंद राजा !!!
नंद राजा अत्यंत ही पराक्रमी और प्रजा वत्सल था। उस राजा के कल्पक वंश के कुल तिलक समान शकटाल नाम का मुख्य मंत्री था। जो अत्यंत ही न्यायप्रिय और बुद्धिनिधान था। उस मंत्री के लक्ष्मीवती नाम की मुख्य स्त्री थी। सद्धर्म प्रवृत्ति में वह अत्यंत ही आदर वाली थी। शील ही उसके जीवन का सर्वश्रेष्ठ अलंकार था।
शकटाल मुख्यमंत्री के दो पुत्र थे। ज्येष्ठ पुत्र का नाम स्थूलभद्र था,जो अत्यंत ही बुद्धिशाली ,तेजस्वी और रूपवान् था । कनिष्ठ पुत्र का नाम श्रेयक था, जो अत्यंत ही कर्त्तव्यनिष्ठ और पराक्रमी था।
शकटाल मंत्री के यक्षा ,यक्षदत्ता,भूता ,भूतदत्ता ,सेणा ,वेणा और रेणा नाम की सात पुत्रियाँ थी । सबसे बड़ी पुत्री यक्षा की यह विशेषता थी कि वह कुछ भी पाठ एक बार सुनती ,और उसे बराबर याद कर लेती। दूसरी पुत्री यक्षदत्ता कुछ भी पाठ दो बार सुनती और उसे याद हो जाता। तीसरी पुत्री भूता कुछ भी पाठ तीन बार सुनती तो उसे याद रह जाता। इस प्रकार क्रमश: चौथी, पांचवी, छठी व सातवीं पुत्री चार ,पाँच ,छः और सात बार कुछ भी पाठ सुनती तो उन्हें याद रह जाता था।
उसी नगर में रूप और लक्ष्मी के संगम समान कोशा नाम की एक वेश्या रहती थी । मंत्री पुत्र स्थूलभद्र उस कोशा के रूप और सौंदर्य में अत्यंत ही आसक्त बना हुआ था। मंत्री पुत्र होने के नाते स्थूलभद्र को धन की तो किसी प्रकार की कमी थी नहीं , अतः यौवन के प्रांगण में प्रवेश करने के बाद वह वेश्या के घर पर ही रहने लगा – समय का प्रवाह आगे बढ़ने लगा और देखते ही देखते बारह वर्ष का दीर्घकाल भी प्रसार हो गया . . . परन्तु स्थूलभद्र अभी तक तृप्त नहीं हो पाया।
अज्ञानी आत्माए भोग द्वारा तृप्ति पाना चाहती है, परन्तु यह किसी काल में सम्भव नही हैं। यदि जल से सागर , ईंधन से अग्नि और धनप्राप्ति से मन तृप्त हो सकता हो तो यह मानव मन भोग सुखों से तृप्ति पा सकता है। परन्तु जिस प्रकार अग्नि , ईंधन से कभी तृप्त नही होती है, उसी प्रकार मानव , भोगो से कभी तृप्त नही होता है।
अनंतज्ञानी महापुरुषो का वचन है कि ये भोग तो अनर्थों की खान है। भोग का गुलाम बनकर अनेक आत्माओ ने अपने जीवन को बर्बाद किया है। सचमुच , व्यक्ति भोग को नही भोगता हैं; किंतु वे भोग ही उसके जीवन को समाप्त कर डालते है।