आर्यरक्षित सुरिवर ने सोचा, ओहो! इतना मेधावी होकर भी यदि यह आगम श्रुत को भूल जाएगा तो फिर दूसरा कौन इस श्रुत को धारण कर सकेगा? सचमुच दिन-प्रतिदिन जीवो की श्रुत ग्रहण शक्ति घटती जा रही है, अतः मुझे समस्त आगमो का सरलतापूर्वक अभ्यास हो सके। इसके लिए कुछ प्रयत्न करना चाहिए! इस विचार कर आर्यरक्षित सुरिवर ने आगमो को चार अनुयोग द्वारो में विभक्त कर दिया।
अंग, उपांग, मूलसूत्र और छेदसूत्रों का चरणकरनानुयोग में समावेश किया।
उत्तराध्ययन आदि का धर्मकथानुयोग में समावेश किया।
सूर्यप्रघ्यप्ति आदि आगमों को गणित अनुयोग में और दृष्टिवाद का द्रव्यानुयोग में समावेश किया।
इस प्रकार भगवान महावीर की पाट परंपरा में आगमो को चार अनुयोग में विभक्त करने का सर्वप्रथम भगीरथ कार्य आर्यरक्षित सुरिश्वर म. ने किया।
आर्यरक्षित सुरिवर ने विंध्यमुनि के लिए यही कार्य किया था। इसके पूर्व एक ही सूत्र में चार अनुयोगों की बातें आती थी।
इंद्र का आगमन
इस जंबूदीप के पश्चिम महाविदेह क्षेत्र में पुष्कलावती विजय में सीमंधर स्वामी भगवंत पृथ्वी तल को पावन करते हुए विचर रहे है। उनका कुल आयुष्य 84 लाख पूर्व वर्ष का है, उनकी काया 500 धनुष की है।
भरत क्षेत्र में श्री कुंथुनाथ भगवान के शासनकाल में वैशाख वद 10 के पवित्र दिन तारक परमात्मा सीमंधर स्वामी भगवंत का जन्म पुष्कलावती विजय की पुण्डरीकिनी नगरी में हुआ था। उनकी माता का नाम सत्यकी ओर पिता का नाम श्रेयांस राजा था। 83 लाख पूर्व वर्ष काल गृहस्थ जीवन में व्यतीत कर, बीसवें श्री मुनिसुव्रत स्वामी भगवंत के निर्वाण के बाद, फाल्गुन सुद 3 के दिन सीमंधर स्वामी भगवंत ने संसार का त्याग कर चरित्र धर्म स्वीकार किया था। 1000 वर्ष के छद्मस्थ पर्याय की पूर्णाहुति के बाद चैत्र 3 के दिन सीमंधर स्वामी भगवन को केवलज्ञान उत्पन्न हुआ था। महाविदेह क्षेत्र में आगामी उत्सर्पिणी काल में आठवें उदय तीर्थंकर के निर्वाण के बाद उनके शासनकाल दरम्यान श्रावण सूद 3 के दिन सीमंधर स्वामी भगवंत का निर्वाण होगा।
एक बार इंद्र महाराजा सीमंधर स्वामी भगवंत के समवसरण में पधारे। उस दिन सीमंधर स्वामी भगवंत ने संसार के यथार्थ स्वरुप को समझाने वाली धर्मदेशना दी।
अनादिकाल से अनंत संसारी जीव निगोद में रहे हुए हैं। एक श्वासोच्छवास में उनके सत्रह बार जन्म और सत्रह बार मरण ओर अठारवीं बार पुनर्जन्म होता है। निगोद में रहा जीव सतत जन्म मरण की पीड़ा भोग रहा है।
जब किसी एक आत्मा का मोक्ष गमन होता है, तब अपनी भवितव्यता के योग से और व्यवहार राशि (निगोद) में रही हुई आत्मा बाहर निकलती है और व्यवहार राशि में आती है।
सीमंधर स्वामी तारक परमात्मा ने अत्यंत ही सूक्ष्मता से निगोद में रहे हुए जीव के स्वरूप का वर्णन किया, जिसे इंद्र महाराजा ने अत्यंत ही ध्यान पूर्वक सुना। इस प्रकार सुष्मतापूर्वक निगोद के स्वरूप का वर्णन उन्होंने पहली बार सुना था। उनके आश्चर्य का पार न रहा। ओहो! निगोद का जीव सतत इतनी भयंकर वेदना भोग रहा है।