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आर्यरक्षित सूरिजी – भाग 41

संबंधीजनों ने पुष्यमित्र को अपने घर पधारने के लिए आमंत्रण दिया। गुरुदेव की अनुज्ञा से पुष्यमित्र अपने कुटुंबीजनों के घर गए और संयम जीवन के लिए योग्य बस्ती में ठहरे।

वहां रहने पर संबंधीजनों ने स्निग्ध भोजन व घी आदि से पुष्यमित्र की खूब-खूब भक्ति की……. परंतु स्वाध्याय में लीन बने पुष्यमित्र को स्निग्ध भोजन में लेश भी आसक्ति नहीं थी, स्वाध्याय की लीनता के कारण उनकी काया क्रश ही बनी रही।

कुटुंबीजनों ने सोचा पुष्यमित्र द्वारा किया गया भोजन राक में घी डालने की तरह निरर्थक ही जा रहा है, बहुत सा और गरिष्ठ भोजन करने पर भी इसे कुछ भी फायदा नहीं हुआ?

कुटुंबीजन सोच में पड़ गए। उन्होंने पुष्यमित्र को स्वाध्याय के लिए मना किया और फिर आहार ग्रहण करने के लिए आग्रह किया।

गुरुदेव की आज्ञा से पुष्यमित्र ने थोड़े समय के लिए स्वाध्याय बंद कर दिया……. अब उनका शरीर धीरे-धीरे पुष्ट होने लगा। अंत प्रांत भोजन से भी उनका शरीर पुष्ट ही हो रहा था।

कुछ ही दिनों में कुटुंबिजनो को प्रतीत हो गई कि वह ना तो रोगी थे और ना ही तुच्छ भोजन थे……..परंतु स्वाध्याय आदि के कारण उनकी काया क्रश थी।

पुष्यमित्र ने अपने संबंधीजनों को प्रतिबोध दिया। स्वाध्याय की महिमा और उसका स्वरूप समझाया।

पुष्यमित्र के धर्मोंपदेश का श्रवण कर सभी कुटुंबीजन जैन धर्म के उपासक बन गए।

पुष्यमित्र मुनि पुनः अपने गुरुदेव के चरणों में आ गए।

आर्यरक्षित सुरीवर प्रतिदिन अपने शिष्यों को श्रुत की वाचना प्रदान करते थे। सुरिवर का एक शिष्य विंध्य भी अत्यंत मेधावी था। परंतु जिस गति से आर्यरक्षित सूरिवर स्वाध्याय मंडली में वाचना दे रहे थे, उसे विंध्यमुनि अच्छी तरह से ग्रहण नहीं कर पा रहे थे, तो उन्होंने गुरुदेव से विज्ञप्ति की, “भगवंत! श्रुत मांडली में मेरा पाठ स्खलित हो रहा है, अतः मुझे अलग से कहो।”

गुरुदेव ने कहा, अच्छा! मैं तुम्हारे लिए स्वाध्याय की अलग व्यवस्था कर देता हूं।

सुरिवर ने पुष्यमित्र मुनि को बुलाकर कहा, इस विंध्यमुनि को रोज वाचना प्रदान करो।

विंध्यमुनि ने गुरुदेव की आज्ञा तहत्ती कर स्वीकार की।

पुष्यमित्र मुनि विंध्यमुनि को वाचना देने लगे, इस प्रकार कुछ दिन व्यतीत हुए।

एक दिन उसने आकर गुरुदेव से विज्ञप्ति कि – “भगवन! मेरी प्रार्थना है, वाचना में व्यग्रता के कारण मैं अपना ग्रहण किया हुआ श्रुत भूल रहा हूं…….. समयाभाव के कारण पूरा स्वाध्याय नहीं हो पा रहा है…… पहले आप की आज्ञा से अपने घर गया था और वहा स्वाध्याय बन्द कर देने से अब मुझे स्वाध्याय में भूले आ रही है…..यदि अब मं. वाचना दूंगा तो निश्चय ही नोवां पूर्व भूल जाऊँगा।

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