पुष्यमित्र
महान प्रभावक आर्यरक्षित सूरीजी महाराज के गच्छ में अनेक विद्वान और प्रभावक मुनिवर थे।
आर्यरक्षित सुरिश्वर विविध क्षेत्रों में विहार करते हुए जिनशासन की अजोड प्रभावना कर रहे थे।
उनके शिष्य परिवार में चार मुख्य प्रकांड विद्वान शिष्य थे।-
(1) दुर्बलिका पुष्यमित्र
(2) विंध्य
(3) फल्गुरक्षित और
(4) गोष्ठामाहिल।
दुर्बलिका पुष्यमित्र अर्थात स्वाध्याय की साक्षात मूर्ति!
वे ज्ञान के अत्यंत व्यसनी थे। विशुद्ध चरित्र पालन के साथ-साथ उन्हें ज्ञान में तीव्र रस था। वे सतत स्वाध्याय में लीन रहते थे….. और इस कारण घी का पान करने पर भी उनकी देह लता अत्यंत दुर्बल थी। भोजन में उन्हें कोई रस या आसक्ति नहीं थी। अतः स्वाध्याय के अति श्रम के कारण घी का भोजन भी पच जाता था और मानसिक श्रम के कारण उनका शरीर दुर्बल ही रहता था। उन्होंने अपने गुरुदेव आर्यरक्षित सूरीजी म. के पास में 9 पूर्व का अभ्यास किया था। ग्रहण किया गया श्रुत भूल न जाए, इस हेतु वे रात-दिन स्वाध्याय में लीन रहते थे।
ग्रहण किये श्रुत को स्थिर करने के लिए उसका बार-बार स्वाध्याय/पुनरावर्तन अनिवार्य है…… यदि सतत पुनरावर्तन जारी न रखा जाए तो ग्रहण किया गया सभी श्रुत विस्मृत हो जाता है।
रोटी सेकने के लिए उसे बार-बार अग्नि पर घुमाना पड़ता है, यदि ऐसे ही रख दि जाए तो वह जलकर भस्मीभूत हो जाती है।
बस, इसी प्रकार ज्ञान को स्थिर करने के लिए उसका पुनरावर्तन अत्यंत जरूरी है।
उनका मुख्य नाम तो पुष्यमित्र था…….. परंतु स्वाध्याय के कारण दुर्बल काया होने से लोग उन्हें दुर्बलिका पुष्यमित्र कहते थे।
पुष्यमित्र के स्वजन संबंधी बौद्ध धर्म के थे।
एक बार आर्यरक्षित सूरीजी म. दशपुर नगर में विराजमान थे, तभी पुष्यमित्र के संबंधी उनको वंदना करने के लिए आए।
वन्दन करने के बाद पुष्यमित्र के संबंधी जनों ने पूछा, “क्या आपके धर्म में ध्यान नहीं है?” सुरिवर ने कहा, हमारे धर्म में तो श्रेष्ठ ध्यान है…… ऐसा ध्यान योग अन्य कहीं नहीं है। तुम्हारे संबंधी पुष्यमित्र मुनि, ध्यान के कारण ही अत्यंत दुर्बल है।
उन्होंने कहा, “ऐसा नहीं होना चाहिए, हमारे ख्याल से तो तप करने और मधुर आहार के अभाव के कारण ही वे अत्यंत दुर्बल हुए हैं।”
सुरिवर ने कहा, “पूज्यो की कृपा से यह तो घी का भोजन करता है”, परंतु सतत स्वाध्याय और ध्यान के कारण अत्यंत कृश दिखाई देता है।
सम्बन्धी जनो कहा, “नहीं आपके पास स्नेह की संपत्ति कहां है? सो आप इसे घी पिलाओ?”
आर्यरक्षित सुरिवर ने कहा, “यह स्वयं घी पिता है…. फिर भी तुम्हें विश्वास ना हो तो इसे अपने घर ले जाओ और इसे घी का स्निग्ध आहार खिलाओ, फिर तुम स्वयं जान लोगे कि इसकी दुर्बलता का कारण क्या है?”