Archivers

आर्यरक्षित सूरिजी – भाग 37

बस आर्यरक्षित सुरिवर के उपदेश अमृत का पान कर सोमदेव शिवाय सभी दीक्षा के लिए तैयार हो गए।

आर्यरक्षित ने अपनी माता सभी को शुभ मुहूर्त में दीक्षा प्रदान की।

“सभी की दीक्षा हो जाने पर सोमदेव ने कहा, में भी दीक्षा लेने के लिए तैयार हूं, परंतु मुझे कुछ वस्तुओं की छूट दो।”

आर्यरक्षित ने पूछा, “कौनसी छूट चाहते हो?”

सोमदेव ने कहा, “मैं धोती पहनूंगा, पैरों में जूते पहनूंगा, छत्री और जनेऊ धारण करूंगा इत्यादि।”

आर्यरक्षित सूरीश्वर महान ज्ञानी और गीतार्थ थे।

उन्होंने सोचा, भविष्य में यह स्वयं इन वस्तुओं का त्याग कर देंगे- इस प्रकार विचार कर पिता की शर्त में निषेध अनुमति दिए बिना उन्हें भागवती दीक्षा प्रदान कर दी।

एक बार आर्यरक्षित सूरीश्वर विहार कर किसी नगर में गए। वहां के श्रावको ने सभी मुनियों का वंदन किया, किंतु छत्रधारी सोमदेव मुनि को वन्दन नही किया।

उपाश्रय में आकर सोमदेव मुनि ने आर्यरक्षित सूरीश्वरजी से पूछा, “क्या मैं वंदनीय नहीं हूं”?

आर्य रक्षित ने कहा, “तात! छत्र धारण के साथ वंदनीय कैसे बनोगे? अतः छत्र छोड़ दो…… जब गर्मी पड़े तब सिर पर वस्त्र रख लेना।”

आर्यरक्षित की यह बात सोमदेव मुनि ने तुरंत स्वीकार कर ली और उन्होंने हमेशा के लिए छत्र का त्याग कर दिया।

इस प्रकार धीरे-धीरे आर्यरक्षित सूरीश्वरजी ने अपने पिता मुनि के पास से छत्र, जूते तथा जनेउ आदि गृहस्थ वेष युक्तिपूर्वक छुड़वा दिया……. परंतु उन्होंने धोती का त्याग नहीं किया।

एक बार आर्यरक्षित सूरीश्वरजी म. के समुदाय में किसी मुनि का स्वर्गवास हो गया। उस समय ऐसी प्रथा थी कि स्वर्गस्थ मुनि के देह को एक मुनि उठाकर जंगल में ले जाते और उस देह का परिष्ठापनिका समिति के अनुसार वोसिरा कर देते थे।

आर्यरक्षित सूरिजी – भाग 36
July 23, 2018
आर्यरक्षित सूरिजी – भाग 38
July 23, 2018

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Archivers