आचार्य भगवंत संथारे पर लेट गए……. उनका देह लगभग क्षीण हो चुका था…… आर्यरक्षित मुनिवर पास में ही बैठे थे। आचार्य भगवंत ने समस्त जीवो से क्षमापना की…. नमस्कार महामंत्र का जोर से उच्चारण किया……. णमो अरिहंताणं….. णमो सिद्धाणं….. णमो आयरियाणं….. णमो उवज्झायाणं….. णमो लोएसव्वसाहूणं ऐसो पंच नमुक्कारो , सव्व पवप्पणासणो……मंगलाणं च सव्वेसिं पढमं हवइ मंगलं।
चत्तारि सरणम्……. पवज्जामी। अरिहंते सरणं पवज्जामी। सिद्धे सरणं पवज्जामी। साहू सरणं पवज्जामी। केवलि-पण्णतं धम्मं सरणं ……..पवज्जामी।
आर्यरक्षित मुनिवर नमस्कार महामंत्र का जोर से उच्चारण करने लगे ……..आचार्य भगवंत भी स्वर में स्वर मिलाकर बोलने लगे…….. बस! जीवन के अमूल्य क्षण बीतने लगे……. आचार्य भगवंत ने कहा- नमो….. अ….रि….हं….ताणं…… उन्होंने अपना देह सदा के लिए छोड़ दिया। पंछी उड़ गया…… पिंजरा पड़ा था। देह का त्यागकर आचार्य भगवंत देवगति को प्राप्त हुए।
आर्यरक्षित पास में ही बैठे थे……… आचार्य भगवंत के स्वर्ग-गमन से आर्यरक्षित की आंखें अश्रुसिक्त हो गई….… उनके मुख पर विषाद छा गया।
आसपास से आए हुए अनेक श्रावक-श्राविकाओं ने आचार्य भगवंत कि देह के अंतिम दर्शन किए।
आर्यरक्षित मुनिवर की अनुज्ञा से एक मुनिवर ने आचार्य भगवंत की देह को उठाया….. और वे जंगल/निर्जीव स्थान में जाकर उसे परिष्ठापन करके आ गए।
स्वर्गस्थ आचार्य भगवंत के निमित्त सभी मुनियों ने मिलकर देववंदन किया।
आर्यरक्षित मुनिवर ने सभी को जीवन की अनित्यता…….. क्षण भंगुरता समझाई और जीवन में सामाधि-प्रेरक उपदेश दिया। आचार्य भद्रगुप्तसूरिजी के स्वर्ग गमन से जैन शासन को जबरदस्त क्षति पहुंची।