सुरसुन्दरी के ब्याह कैसे करे ?अपन ने उसे जितने उचे -उमदा संस्कार दिए है…. वेसी श्रेष्ठ कलाए दी हैं उसके अनुरूप वर मिलना चाहिए ना?’
‘ आज नहीं तो कल मिलेगा ….उसका पूण्य ही खीच लायेगा सुयोग्य वर को ।’ रानि ने अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हुए आश्वासन दिया।
‘ यह तो अपना माता -पिता का हर्दय हैं इसलिए चिंता -फ़िक्र होना स्वाभाविक हैं,वरना तो इस बात में निर्णायक बनते हैं आत्मा के अपने शुभाशुभ कर्म ।यह बात में कहा नहीं जानता हु देवी ?पर ,अपना कर्तव्य भी अपन को पुरि जवाब दारी से अदाकरना हैं न ?’
‘ मेरी एक विन्नति हैं आप से !’
‘कहो, क्या बात हैं ?’
‘एक दिन आप सुरसुन्दरी के ज्ञान की परीक्षा तो ले !’
रानी का प्रस्ताव सुनकर राजा सोचने लग गये ।उन्होने रानी के सामने देखा…. कुछ सोचा और बोले :’परीक्षा लुगा ,पर राजसभा में ।अकेली सुरसुन्दरी की ही नहीं वरन ,साथ ही साथ श्रेष्ठि धनाव के पुत्र अमरकुमार की भी परीक्षा मुझे लेनी हैं।पंडित जी की इच्छा भी यही हैं….मुझे उन्होंने कही बार कहा हैं:’सुरसुन्दरी और अमर कुमार मेरे श्रेष्ठ विधार्थी हैं,आप राजसभा में उनकी परीक्षा ले ।’तुमने आज ठीक याद करवाया ….।’
रानी का मन आशवस्त हुआ ….राजा अपने मन में किसी समस्या समाधान खोज रहे थे।
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