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कथा योशोदा कि व्यथा नारी की भाग 6

प्रियदर्शना वैसे तो ८ वर्ष कि बाला ही थी ! तो भी उसमे गंभीरता , समझशक्ति इत्यादि गुण खिले हुए थे ! माँ की बात उसे बराबर समझ आ गई ! माँ एकदम निर्दोष है यह बात का भी उसे पक्का ख्याल आ गया ! माँ को दुःखी करने की वजह से वह भी आसो – भादरवा बरसाने लगी ! खुद के छोटे कोमल हाथों से यशोदके आंसुओं को पोछने लगी !

प्रिया : ” मम्मी ! तू मत रो , मेरी भूल हो गई ! मुझे विश्र्वास हो गया है कि तेरी कोई भी भूल नहीं है ! भले बापुजी चले गए ! तू तो मेरे पास है ना ? मेरे साथ है ना ? मुझे बापुजीकी कोई जरुरत नहीं है ! अभी मैं कभी भी बापुजी को याद नहीं करुँगी ! ”

कौनसी माता पुत्री के ऐसे शब्दों को सुनकर हर्ष के आसूं न सारे ? यशोदा को अत्यंत शांति का अनुभव हुआ !

यशोदा : ” प्रिया ! तेरे बापुजी कभी भी इस संसार में तेरे में या मेरे में रागी थे नहीं और है भी नहीं ! वे तो विश्वके सभी जीवोको खुदके प्राणों से भी अधिक चाहते है ! वे खुदके विश्वव्यापी स्नेह को सिर्फ हम दोनों में ही संकुचित करना नहीं चाहते !

तेरे पिता अभी विश्वपिता बननेवाले है ! इसलिए तुझे उन्हें भूलना ही होगा ! मैं भी भूल जाउंगी ! भूलने का प्रयत्न करुँगी ! उस लोकोत्तर पुरूष को भूलना यह मेरे लिए शक्य ही नहीं है ! प्रिया ! विश्व के हित के लिए हम दो लोगो को उतना भोग तो देना ही होगा !

पुत्री ! तू तो थोड़े बरसों में शादी करके ससुराल चली जाएगी ! तुझे तो बहुत से नए स्वजन – स्नेही मिलेंगे ! तुझे तेरे बापुजी के बिना का जीवन कठिन नहीं पड़ेगा ! सामान्यसे यह नियम है कि ‘ स्री पतिके प्रेमको पाकर पिता के प्रेम को भूल जाती है !’ परंतु मेरा क्या ? तेरे जाने से तो मेरा एक मात्र सहारा भी चला जाएगा ! फिर मेरा कौन ? यह राजमहल मेरे लिए स्मशान बन जायेगा ! क्षत्रियकुंड मेरा कोई दुश्मन नहीं है यह बात तो सच्ची है , परंतु ऐसा कोई मित्र भी कहाँ है कि जिसके समक्ष मैं अपना ह्रदय खली कर सकु ? सुख दुख की बांते कर सकु ?

कोई गम नहीं ! मेरा अवतार ही सहन करने के लिए हुआ है! चुपचाप सब कुछ सहन करती रहूंगी ! तेरे बापुजी का और तेरा स्मरण करते करते यह भव तो सुख दुख से पसार कर दुंगी ! परंतु बेटा ! ससुराल जाने के बाद दो – तीन बरसों में भी तुझे मिलने आयेगी ना? ससुराल के सुखो मे तेरी इस निराधार माँ को भूल तो नही जायेगी ना?

आगे कल की पोस्ट मे पडे..

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