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कथा योशोदा कि व्यथा नारी की भाग 16

यशोदा खूब ही विहल हो गई! उसकी वेदना तो नारी ही समझ सकती है! यह विश्व तो उसकी कल्पना करने के लिए भी समर्थ नहीं है!

“यशोदा!” यशोदा के कर्ण पर यह मधुर टहुँका सुनाई दिया! यशोदा ने राजमार्ग से दृष्टि खींची, तो सामने ही वर्धमानकुमार खड़े थे ! यशोदा को आष्चर्य हुआ ‘अहो हो !आखरी आखरी पलो में भी मुझे याद किया? इस अभागिनी को याद करने वाला है ही कौन ?’ यशोदा त्वरीत खड़ी हो गई! सड़सड़ाट दौड़कर वर्धमान के चरणो में पैर की माफक गिर गई! उसकी आँखो मे से चौधार आँसु बरसने लगे! दो-चार मिनिटो तक वर्धमान ने उसे रोने दिया!

“यशोदा ! हजारो लोगो के बीच में से खड़े होकर अंतिम बार तुझे मिलने आया हूँ ! तुझे इतना ही कहने आया हूँ कि ‘यशोदा! अभी मै जा रहा हूँ! मै तुझे तेरी ईच्छा के अनुसार सुख नहीं दे पाया नहीं हूँ! तेरी यह महानता हैं, कि तुने तेरे सभी सुखो का भोग देकर मेरा मार्ग निष्कंटक बना दिया है! मेरी प्रसन्नताको ही तूने सर्वस्व समझ लिया! मेरी वजह से तुझे बहुत दुःख हुआ होगा! उसकी क्षमा चाहता हूँ!मुझे माफ़ करना!”

ये अंतिम शब्दों को सुनते ही यशोदा टूट गई ! स्वामी की यह केसी उदारता है , एक मेरे जेसी तुच्छ नारी के पास क्षमा यांचे? यशोदा आक्रंद सहित रोने लगी!

“यशोदा में महाभिनिष्क्रमण के मार्ग पर जा रहा हूँ, अति कठिन है यह मार्ग ! मेरी विदाई के अवसर पर तू सहर्ष अनुमति दे ! आंसुओ को बहाकर अमंगल मत कर ! यदि तू सहर्ष अनुमति नहीं देगी तो मेरे मन में एक रंज रह जाएेगा कि एक व्यक्ति मेरी वजह से दुःखी है!”

यशोदा को ख्याल आ गया कि इस अवसर पर उसकी जिम्मेदारी क्या है? वह तुरन्त खड़ी हो गई ! वस्त्रो से खुद के आँसुओ को पोछकर वह बोलने लगी! “स्वामीनाथ! यह तो हर्ष के आँसु है! आपने मुझे अंत-अंत में भी याद किया यह हर्ष ह्रदय में समा नहीं पाया इसलिए अश्रु के रूप में उभर गया ! आप सुख पूर्वक आपके मार्ग पर प्रयाण किजिए! आपकी मंगल कामना पूर्ण हो उसकी में राह देखूँगी !

आगे कल की पोस्ट मे पडे..

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