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कथा योशोदा कि व्यथा नारी की भाग 12

यशोदा- प्रिया ! जो बात मुझे बरसो से समझ में नहीं आती थी , वह बात आज समझ में आ गई! मुझे सतत विचार आते कि ये संसार के खाने, पीने, फिरने के सुख कितने सोहवने हैं? मै तो इन सुखो के पीछे पागल हूँ , परन्तु स्वामी को क्यों इनमे कोई रूचि नही होती? वे क्यों अत्युदास ही रहते है?

परन्तु प्रिया! अभी मुझे समझ में आया कि जभी तुझे हल्का बुखार आता, जभी तुझे सिरदर्द होता, जभी तुझे पेट दर्द होता, और इन दुःखो से तुझे पीड़ा होती, तभी मै आधी-आधी हो जाती! मुझे खाने में रूचि नहीं होती, संसार के तमाम सुखो पर मेरा राग टूट जाता! कारण ? कारण के तू मुझे बहुत ही प्रिय है और इसलिए तेरे दुःखो में मै कभी-भी सुख का अनुभव कर नहीं पाई हूँ!

प्रिया! तेरे बापुजी को तो विश्व के हरेक जीव बहुत बहुत प्रिय हैं! इसमे अंनतानंत जीव अनंत काल से निगोद की भयानक दुनिया के कातील वेदना! अनुभव कर रहे हैं! विश्वके लगभग प्रत्येक जीव कोईना कोई दुःख से पीड़ित है ! प्रिया! यह देखकर तेरे बापुजी को मिष्ठान के भोजन न भाए उसमे कोई आश्चर्य नही है ! तुझे नरक के जीवो के मुकाबले यदि एक लाख भाग की वेदना से भी मैें त्रसित देखु तो प्रिया! मैं जी भी नहीं सकुंगी! तो तेरे बापूजी तो खुदके करोडो प्रिय संतानो को अभी चिल्लाते हुए, खून और मांसिक नदियो में लोटते हुए भड़भड़ भड़कती आग में जलते जलते ‘त्राहि माम्’ का पुकार करते हुए, साक्षात देख रहे है, तो भी वे जी रहे है, यही ही बड़ा आश्चचर्य है !

प्रिया! तुझे अभी समझ में आया ना? की क्यों तेरे बापुूजी हम दोनों को छोड़ रहे है! बस, इतना समझाने के लिये ही मैेने तुझे उठाया था! प्रिया! ‘अभी तूु सो जा!”

परनतु अभी वह देव बाला कैसे सोऐ? एक घंटे तक दोनों माँ-बेटी वहाँ ही वर्धमान को देखते बैठ रहे !

आकाश में प्रकाश विस्तरता गया ! अंततः दोनों ही वहाँ से खड़े हुए!वर्धमानको मिलने के लिए जल्दी तैयार होना था ना!

प्रातःकाल आवश्यक कार्य पुर्ण होने के पश्च्यात यशोदा ने आर्यनारी को शोभे वेसे हंसकी पंखुड़ी के जैसे शेतवस्त्रो को धारण किऐ! प्रियदर्शना को भी देवबाला लगे वैसे तैयार किया ।

आगे कल की पोस्ट मे पडे..

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January 27, 2017
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January 27, 2017

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