Archivers

कथा योशोदा कि व्यथा नारी की भाग 11

अचानक से यशोदा को विचार आया की आज प्रिया को लेकर स्वामी को मिलने जाना है। परन्तु प्रिया को इस रीत से उसके बापुजी के दर्शन कभी भी नहीं हुए होंगे। वह त्वरीत ही अंदर गई। शय्या से सोई हुई प्रिया को उठाया, प्रिया! “जल्दी उठ! एक अदभुत दृश्य बताती हुँ”। माता के वचनो को सुनकर प्रिया तुरन्त बैठ गई! उसके शरीर पर बराबर रत्नकम्बल ओढ़ कर यशोदा उसे झुरूखो में ले गई –

“देख प्रिया! बगीचे के उस पेड़ के निचे देख,कौन खड़ा है? जरा धयान से देख।”

प्रिया: “माँ! ये तो बापुजी है। इतनी जल्दी सुबह में ऐसी क़तील ठंडी में वो क्यों वहाँ खड़े हे ? माँ ! बापुजी को ठंडी लगती होगी! तू वहा जा और रतंकम्बल ओढाा कर आ !”
यशोदा ने दर्द भरा समित किया!

यशोदा:”प्रिया! क्या तेरे बापुजी के पास रत्नकम्बल नही ह? उन्हें ओढना ही होता तो कौन उनको रोकने वाला हे?”

प्रिया: “परंतु, माँ बापुजी ऐसा क्यों करते हे? इस तरीके से असय ठंडी में खुले आकाश के निचे खड़े रहने का क्या प्रयोजन हे?

यशोदा: “यह बात तो मुझे भी आज तक समझ में नहीं आई है ! परनतु प्रिया आज सब कुछ समझ में आ गया ! देख प्रिया! मेरी और देख! मैंने भी रत्नकम्बल ओढा नहीं हैै ! तो भी मुझे ठंडी नहीं लग रही है ! उसका कारण जानती है? तेरे बापुजी को मैंने इस तरीके से देखा! इसलिए मुझे विचार आया के स्वामी यदि इस तरीके से रत्नकम्बल के बिना क़तील ठंडी को सहन करे, तो मुझसे कैसे कम्बल ओढ़ा जा सकता है ? और मैंने उसे दूर कर दिया!

प्रिया! यदि मात्र स्वामी प्रति के अनुराग ने मुझे में यह असह ठंडी को सहन करने की शक्ति उतपन कर दी, तो तेरे बाबूजी तो चौद राज के प्रत्येक जीवो पर मेरे इस अनुराग से अनंतगुण ज्यादा धारण करते है! उनमे इस सहनशक्ति का वास होतो उसमे क्या आश्चर्य की बात हे?

प्रिया! तेरे बापुजी विश्व के करोडो निराधार मानवो को निहार रहे है! जिन मनुष्यो के पास घर नही है, पहनने के लिए वस्त्र नही है, उनके पास ओढ़ने के लिए तो कामली तो कहा से होगी? विश्व के कई कोने में संकोचकर पड़े हुए इन करोडो मानवो को देखने के बाद विश्वमाता तेरे बापूूजी कैसे रत्नकम्बल ओढे?

तीन दिनों से पेट में अनाज का एक कण भी पहुंचा नही है, ऐसे कितने ही गरीब भूख के कारण सो पाये नहीं होंगे!

प्रिया ! तु तो मेरी एकमात्र प्यारी पुत्री है। तुझे नींद न आए तब तक में सो नहीं सकती हुँ। तो तो यह सभी जीव तेरे बाबूजी के लिए तो प्यारी संतान हे। वे नींद नहीं ले सकते तो तेरे बाबूजी कैसे मखमल की गादि में रत्नकम्बल को ओड कर निद्रा का सुख मान सके?..

आगे कल की पोस्ट मे पडे..

कथा योशोदा कि व्यथा नारी की भाग 10
January 27, 2017
कथा योशोदा कि व्यथा नारी की भाग 12
January 27, 2017

Comments are closed.

Archivers