सुबह में उठते ही अमरकुमार ने संकल्प किया
‘आज पहले पिताजी से बात करूंगा। बाद मे माँ से बात करूंगा।
सुबह में वह धनावह सेठ से बात न कर पाया। दुपहर को भोजन के समय बात रखूंगा तो माँ भी अपने आप बात जान लेगी। पर वह भोजन के समय भी बात नही कर पाया। पिताजी एवं माता के चेहरे पर जो अपार खुशी थी उसे देखकर वह हिम्मत न कर सका। उन प्रसन्नता के फूलों को अपनी बात के वज्राघात से कुचलने की। मेरी बात सुनकर माँ उदास हो जायेगी।पिता व्यथित हो उठगेे तो ? उसने सोचा ‘शाम को पिताजी के खंड में जाकर बात कर लूँगा। शाम हो गई। भोजन वगैरह से निवृत होकर वह पिताजी के खण्ड में पहुंचा। पिता को प्रणाम करके उनके पैरो के पास जमीन पर बैठ गया। बात का प्रारंभ सेठ ने स्वयं ही कर दिया। ‘अमर’आजकल तु व्यापार में अच्छी दिलचस्पी दिखा रहा है ओर तू’ पेढ़ी के जो कार्य सम्भालने लगा है….इससे मेरे दिल को काफी तस्सली मिलती है, बेटा।’ अमरकुमार को अपनी मन की बात करने का अवसर मिल गया….उसने मौका साध लिया। ‘पिताजी,मेने तो सिंहलद्वीप के व्यापारियों के साथ व्यापार को लेकर कई तरह की महत्वपूर्ण बातें भी की थी। ‘मै जानता हूँ…..वे व्यापारी तेरी बुद्धि की प्रशंसा भी कर रहे थे मेरे समक्ष ।
‘पिताजी,पिछले कई समय से मेरे मन में एक बात उभर रही हैं….आप आज्ञा दे तो कहु।
‘कह न ! जरूर कह,बेटे !
‘मेरी इच्छा सिंहलद्वीप वगैरह देश-विदेश में जाने की है! ‘है?
पर क्यो बेटा, तुझे क्यो वहां जाना पड़े ?
‘मै अपने पुरुषार्थ से अपनी क़िस्मत को अजमाना चाहता हूँ । मै अपनी बुद्धि से पैसा कमाना चाहता हूं ।
आगे अगली पोस्ट मे…