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सुर और स्वर का सुभग मिलन – भाग 7

‘मंजरी, तुझे वीणावादन सुनना अच्छा लगता है ना ?’
‘एकदम ! ! आज दिन तक तो दूर ही से केवल ध्वनि
सुनती थी….अब से तो…आज तो दर्शन और श्रवण दोनों मिलेंगे, धन्य हो जाऊँगी
!’
‘देवी….,संगीत के सहारे अपन अपने प्रेम को दिव्य तपश्चर्या में ढाल
देंगे…। अपना प्रेम आत्मा से आत्मा का, दिल से दिल का प्रेम बनेगा । देह और
इंद्रियों के अवरोधों को दूर करके दिव्य प्रेम का सेतु बनायेंगे अपने बीच
प्रेम का अद्धते रचेंगे ! ‘
गुणमंजरी के सुंदर, सुकुमार नयन अचल श्रद्धा से विमलयश को निहारने लगे फिर भी
यह सब क्या था ? एक भोली हिरनी सी पत्नी के साथ छलावा ! विमलयश के दिल मे
खामोश पीड़ा की कसक गहराने लगी । वह खड़ा हुआ …. और अपनी वीणा को उत्संग में
लेकर गुणमंजरी के सामने बैठ गया ।
वीणा के तार झंकार कर उठे । सुरावली की लहरें हवा के साथ साथ आंदोलित होने
लगी । वीणा के तारो पर उसकी उँगलियाँ जैसे स्वरों की गुलछड़ी बन गई…और उस
सुरावली के साथ लावण्यपुंज सी गुणमंजरी के कोकिल कंठ का स्वरमाधुर्य घुलने
लगा…! दोनों के प्राण स्वरसरिता में गहरे तक डूब गये ।
रोजाना रात को इसी तरह स्वर्णदीपको के सुहावने मद्धिम प्रकाश में वीणावादन
होता रहता है…. । दोनों की आत्मा में अद्धते रच जाता है । बाद में दोनों
पद्मासनस्थ बनकर श्री नवकार मंत्र के ध्यान में लीन बनते है…
कभी विमलयश गुणमंजरी को श्री नवकार मंत्र का प्रभाव बताता कहानियां सुनाता
है…। गुणमंजरी भावविभोर बनकर कथामृत का पान करती है ।
कभी विमलयश गुणमंजरी को तत्वज्ञान की बाते समझता है…। जीवन के रहस्यों को
खोल कर बताता है….। अनंत असीम जीवन की बाते सुनकर गुणमंजरी प्रसन्न हो उठती
है । धीरे धीरे गुणमंजरी तत्वज्ञान को अपने आप मे संजोना सीख गई ।
दिन गुजरते है दरिये पर से गुजरती लहरों की भांति । विमलयश को श्रद्धा है :
एक महीना पूरा होते अवश्य अमरकुमार आ पहुँचने चाहिए । उसका दिल, उसका ह्रदय
श्रद्धा को हार नही गया था । उसे विशवास था : ‘मेरा सतीत्व विजेता बनकर
रहेगा’
महीने में केवल तीन दिन शेष रहे ।
गुणमंजरी के ह्रदय में प्रेम का ज्वार उफनने लगा है । विमलयश कि निगाहे दूर
दूर अमरकुमार को खोज रही है । उसका अंत:करण उसे आशवस्त बनाता है । उसकी वाम
चक्षु स्फुरायमान होने लगी है….उसका दिल अव्यक्त आनंद में डूबा जा रहा है ।
राजमहल के झरोखे में बैठा हुआ विमलयश राजसभा में जाने के लिए खड़ा हुआ । नवकार
मंत्र का स्मरण किया और राजमहल के सोपान उतरने लगा । इतने में सामने से आ रही
सोभाग्यवती स्त्रियों का सुकुन हुआ । शुभ शुकुनो से प्रसन्न मनवाला होकर
विमलयश राजसभा की तरफ चला ।

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