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चोर, जो था मन का मोर – भाग 2

‘आप कहो वैसे करने के लिए मै तैयार हूँ…।

‘आज रात को मै तुम्हे सवा सेर घी दूंगा ।

तुम्हे मेरे पैरों के तलवे में वह घी घिसने का । सवा सेर घी मेरे पैरों में उतार देने का । बोलो, है कबूल  ?’

‘जी हाँ कबूल है  !’

‘तो अभी जाओ… दिन की पूरी नींद निकाल लेना… रात को जगना पड़ेगा ना   ?’

अमरकुमार को उसके कमरे में विदा किया । विमल देखता रहा …. चले जा रहे–दीन-हीन और हताश बनकर चले जा रहे अमरकुमार को । उसके चेहरे पर स्मित की रेखा उभरी । ‘औरो को दु:ख देने में खुशी मनानेवाले को थोड़े दु:ख का अनुभव करवाना जरूरी है  !  ‘

परंतु दूसरे ही पल उसका ह्रदय दु:खी हो गया । ‘नही, नही अब… उन्हें और दु:खी नही करना है…भेद खोल दू’….उन्हें आश्चर्य में डाल दू’….।

‘नही… ऐसी जल्दबाजी नही करना है…. उनके दिल में मेरे लिए कितनी जगह है ? कैसे भाव है  ? यह जान लेना चाहिए । बारह  -बारह साल बीत चुके है, दिल के भाव अगर बदल गये हो तो ? मेरे पर गुस्सा अभी उतरा नही हो तो  ?’

उनके साथ दूसरी कोई औरत नही है… अर्थात उन्होंने दूसरी शादी तो नही की है, ऐसा अंदाजा लगता है। उनके दिल मे मेरा त्याग करके पछतावा तो हुआ ही होगा…. मेरी स्मृति भी उनके दिल-दिमाग मे होगी ही । कभी इंसान कषाय से विवश होकर नही करने का कार्य कर डालता है, पर पीछे से वह पछताता है….।

‘फिर भी बातो बातो में कल मै उन्हें पूछ भी लूंगा । मेरे तरफ के उनके भाव जान लूंगा…. बाद में ही राज खोलूंगा। विलंब नही करना है….. कल ही मै मेरे रूप में… मेरे सच्चे रूप में प्रगट हो जाऊंगा….।

मेरा सच्चा रूप… मेरी वास्तविकता जानकर गुणमंजरी को कितना आश्चर्य होगा ? वह स्तब्ध हो जायेगी ! महाराजा,महारानी… सारा राजपरिवार आश्चर्य के सागर में डूब जायेगा ! नगर में कितना कौतूहल फैलेगा । सभी लोगो के दिल में कितने तरह के सवाल उठेंगे… उन सब का उचित एवं उपयुक्त समाधान भी करना होगा । हालांकि, समाधान करते समय पूरी सावधानी रखनी होगी। महाराजा से तो यक्षद्वीप की घटना कहनी होगी, पर गुणमंजरी से तो बिल्कुल नही कही जा सकती ! क्या पता उसे यदि अमरकुमार के प्रति अभाव या वितृष्णा पैदा हो जाये तो ? उसके साथ शादी करने से इनकार ही कर बैठे तो ?’

 

आगे अगली पोस्ट मे…

चोर, जो था मन का मोर – भाग 1
November 3, 2017
चोर, जो था मन का मोर – भाग 3
November 3, 2017

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