‘ठीक है… ये सारी बातें फिजूल की है । तुझे समय देता हूं … मेरी बात पर
सोचने के लिए … आज का पूरा दिन और आधी रात । आधी रात गये मैं वापस आऊंगा
…। यहां पर तुझे भोजन … पानी वगैरह मिल जायेगा…। मेरे आने के पश्चात
तुझे तेरा निर्णय बताना होगा ।’
‘मैंने मेरा निर्णय बता दिया है… उसमें परिवर्तन की तनिक भी शक्यता
नहीं है… तू आशा के झूठे सपने देखना ही मत ।’
‘संजोग और परिस्थित तो अच्छे अच्छों के इरादे बदल देते हैं छोकरी…, रात
को वापस लौटूंगा… तब तेरे संजोग बदल गये होंगे ….।’
‘संजोग बदलने से क्या होता है रे मूरख। क्या पता , पर मुझे लगता है तेरे
संजोग कहीं नहीं बदल जाये , ध्यान रखना ।’
तस्कर मौन मौन तकता रहा गुणमंजरी को । केतकी के फूल से उसके सुन्दर
प्रफुल्ल नयन … महुवे की कली सा कपोल प्रदेश … अनार की कली से श्वेत शुभ्र
दांत… और जबाकुसुम से रकितम अधर… गुणमंजरी का सौन्दर्य वैभव , वह स्तब्ध
होकर देखता ही रहा ….। उसका दिल बेताब हो उठा…। पर वह डर गया… कुमारी के
कोमर्यतेज से वह हतप्रभ हुआ जा रहा था ।
वह चला गया । गुफा में से बाहर निकला और भेष बदल कर सीधा बेनातट नगर में
प्रविष्ट हो गया ।
तस्कर के जाने के पश्चात गुणमंजरी को अपनी पहाड़ सी गल्ती खयाल में आयी और
वह तड़फ उठी :
‘अरे…मैंने इस दुष्ट को कहां विमलयश का नाम बता दिया …? कितनी बड़ी भूल
कर दी मैंने ? मैंने विमलयश को आफत में डाल दिया । यह चोर भयंकर है , त्रुर
है… कहीं विमलयश को ‘
और वह कांप उठी । उसके चेहरे पर शोक की कालिमा छा गई… उसके ह्रदय की
सांसें गरम हो गई… वह मन ही मन सोचती है :
‘ओह…यह अचानक सब क्या हो गया ? क्या मेरी किस्मत में ऐसा घोर दुःख उठाना
ही लिखा होगा ? और मुझे क्षमा करना विमल… मेरे देव … मैंने तुम्हारा नाम
बोलकर तुम्हारा अक्षम्य अपराध किया है …। मेरे साथ साथ तुम्हें भी संकट में
डाल दिया… न जाने चोर क्या करेगा तुम्हारे साथ ?’
उसकी कल्पनासुष्टि में विमलयश की स्नेहद्र दृष्टि उभरने लगी । उसके कानों
पर जैसे के वीणा के तार झंकुत होकर हौले हौले टकराने लगे ….। पर वह आनन्द
विभोर नहीं हो सकी। वरना तो वीणा की झंकार ही उसे पागल बना देती …. उसके कदम
थिरकने लग जाते । उसके चेहरे पर की ग्लानि कुछ कम हुई … उसका भीतरी
प्रेमसागर कुछ हिलौरे लेने लगा … और उसकी आंखों में आंसू भर आये ।
‘पिताजी मेरी खोज जरूर करवायेंगे ही । मेरे अपहरण के समाचार तो विमल ने
भी जाने ही होंगे । वह भी कितना दुःखी हुआ होगा ? जैसे मैं उसे मेरी समग्रता
से चाहती हूं…. वैसे वह भी मेरे लिये तरसता तो है ही …। मुझे खोजने के
लिये भी शायद निकल गया हो … । वह जान पाया होगा मेरी पीड़ा को ? वह महसूस कर
पायेगा मेरी वेदना को ?
दिनभर वह प्रतीक्षा की आग आंखों में जलती रखकर टकटकी बांधे निहारती रही
गुफा के दरवाजे की ओर, पर उसे केवल निराशा ही हाथ लगी ।
आगे अगली पोस्ट मे…