कौन हे झोपडी में ?’हमने जवाब नहीं दिया ।उसने दुसरी बार आवाज लगाई। हम मोन रहे ,और तीसरी बार उसने पुछा ही था की इतने में तो तबड़क ….तबडक करते हुए घोड़ो की आवाज सुनायी दी ।दूसरा डाकू बोला :अरे भाग यहाँ से यह तो घुड़ सवार आते लगते हे …’और डाकु वह से भाग गये ।
दो गुड्सवार वहा आ पहुचे ।हमें देखकर वह घोङे से निचे उतरे ।हमारे पास आकर सर झुका कर बोले:
‘ आपको खोजते खोजते ही हम यहाँ आये है ।आपने जब पिछले गाँव से विहार किया तब हम भी उसी गाँव से निकले थे ।जहाँ आपको जाना था, उसी सामने वाले गाँव में हमको जाना था ।हम वहा पहुचे । शाम हो गायी… रात होने लगी ..पर आप न आये तो हमें कुछ डर सा लगा.. हमें हुआ शायद आप रास्ता भुल गई होगी …यह जंगल तो चोर डाकुओ का इलाका हैं ….इसलिए हम आपको खोजते खोजते यहाँ पहुचे
‘आप कौन हो महानुभव !’हमने पूछा। ‘आपके सेवक ….!ये कहकर वे दोनों घुडसवार वहा से चले गये ।
‘ओह !यहतो कितना गजब का अनुभव हे ।बस ,अब आपको और ज्यादा कष्ट नहीं देना हे आज।’ सुरसुन्दरी वंदना की और अपने महल को लोटी ।साध्वीजी वात्सल्य भरी निगाहो से भोली हिरणी सी सुरसुन्दरी को जाती हुई देखते रहे।
आगे का अगली पोस्ट में…