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शिवकुमार – भाग 4

वेेताल का गुस्सा फुट पड़ा। वह अधोरि की और लपका।उसे तो खून की प्यास थी। उसने कटारी का प्रहार अधोरि पर ही कर दिया ।जेसे ही अधोरि पर कटारी का प्रहार हुआ… अधोरि का पूरा शरीर सुवर्ण पुरुष में बदल गया ।उसका शरीर सोने का हो गया ।
यदि वही प्रहार शिव कुमार पर होता तो शिवकुमार का मृतदेह सोने का हो जाता ।अधोरि को सुवर्ण पुरुष की सिद्धि करनी थी। इसीलिए वो शिवकुमार को पकड़ लाया था ।
शिवकुमार तो सुवर्ण पुरुष अधोरि के शरिर को सोने का बना देखकर ही ताज्जुब हो उठा। उसे समझ में आगया की ‘यह सारा प्रभाव श्री नमस्कार महामंत्र का हैं । इसी महामंत्र के प्रभाव से ही में बच गया और यह सुवर्ण पुरुष मुझे मिल गया …पर में यदि अभी ही इस सुवर्ण पुरुष को मेरे घर पर ले जाऊगा तो मेरे पर चोरी का इल्जाम भी आ सकता हैं …चुकी इन दिनों तो में निर्धन हु …कही न कही आफत खडी होगी ।इसकी बजाये तो कल में महाराजा दमितारी के पास जाकर सारी हकीकत बता दूँगा। फिर यदि महाराजा इजाजत देगे तो इस सुवर्ण पुरूष को घर पर ले जाऊगा। अभी तो यही पर गड्डा खोदकर गाड़ दू।’
ये सोचकर शिवकुमार मृतदेह के हाथ में रही कटारी से गड्डा खोदने लगा। गड्ढे में सुवर्नपुरुष को गाड़ कर वह नगर में आया । सुबह घर पर जाकर स्नान वगेरह से निपट कर राजमहल में गया।
माराराज दमितारी से मिलकर रात की समय घटना कह सुनायी ।राजा आर्श्चय से ताकने लगा शिवकुमार को ।उसे लगा कही शिवकुमार शराब के नशे में तो नहीं हैं?आखिर शिवकुमार को साथ लेकर राजा खुद श्मशान में गया। शिवकुमार ने गड्डा खोदकर सुवर्ण पुरुष को बहार निकला ।महाराजा को शिवकुमार की बात का भरोसा हुआ, नजरो नजर सुवर्ण पुरुष देखकर !उसने शिवकुमार से कहा :’शिवकुमार, यह सुवर्ण पुरुष में तुझे देता हु ।श्री नमस्कार महामंत्र के अरचिंत्य प्रभाव से यह सोना तुझे मिला हे …परन्तु अब तु व्यसन वगेरह बुरी बाते छोड़कर जीवन को सुन्दर बनाने का प्रयत्न करना ।तेरे पिताजी तो कितने धर्ममय जीवन गुजरने वाले थे ?’
शिवकुमार ने पिता तुल्य राजा दमितारी की प्रेरणा को स्वीकार किया। सुवर्ण पुरुष को अपने घर पर ले गया ।कुछ दिन में तो वो बड़ा श्री मंत हो गया।
एक दिन सदगुरु का सयोग मिला। गुरुदेव ने उसे मानव जीवन को सफल बनाने की धर्मकला बताई ।शिवकुमार ने बारह व्रत अंगीकार किये ।सोने का मंदिर बनवाया और रत्न की प्रतिमा निर्मित करके प्रतिष्ठापित की ।
एक दिन संसार से विरक्त होकर उसने साधुधर्म अंगीकार किया ।संयमधर्म का समुचित पालन किया ।कर्मो को नष्ट किया, और उसकी आत्मा सिद्ध-बुध्द- मुक्त हो गई ।
‘सुरसुन्दरी ,यह हे शिवकुमार की पुरानी कहानी ।श्री नमस्कार माहमंत्र के ऐसे दिव्य प्रभावो के अनुभव तो आज मिलते हे ।’
सुरसुन्दरी तो कहानी सुनने में पूरी रहलिन हो

आगे का अगली पोस्ट में…

शिवकुमार – भाग 3
April 25, 2017
शिवकुमार – भाग 5
April 26, 2017

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