साध्वीजी के अमृत वचन सुरसुन्दरी के दिल में गूंजते रहे। श्री नमस्कार महामंत्र के प्रति श्रद्धा ज्यादा मजबुत हुई। निस्वार्थ और निस्पृह साध्वीजी की बाते उसे पूर्णरूप से विश्वसनीय लगी। रात्रि के समय महामंत्र का स्मरण करते करते ही वह निद्राधिन हुई।
सुबह जब वह जगी तब एकदम प्रफुल्लित थी। उसका ह्रदय अव्यक्त आनन्द की संवेदना से सभर था।
उसे अमरकुमार की स्मृति हो आयी..
यदि वह मिले तो उस मैं श्री नमस्कार महामंत्र के प्रभाव की बात करूँ… वह भी रोजाना इस महामंत्र का समरण करे, पर आज नहीं आज तो मैं साध्वीजी से महामंत्र के बारे में और और अधिक जानकारी लूंगी, फिर अमर को मिलुगी और उसके साथ बाते करुँगी।
भोजन वगेरह से निवृत होकर मध्यान के समय सुरसुन्दरी साध्वीजी के पास उपाश्रय में पहुची। वंदना करके विनय सहित बेठी साध्वीजी के कुशल पृच्छा की और कहा: गुरुमाता ,कल आपने जो बाते बतायी थी …मेरे मन में उन्ही का मंथन चलता रहा ।रात को महामंत्र का एकाग्र मन से स्मरण करते करते मैं कब सो गयी पता ही नहीं लगा आज भी उसी विषय में मुझे और कुछ बताने की कृपा करेगे?
भाग्यशाली ,जरूर !आज में तुझे एक प्राचीन कहानी सुनाऊँगी । यह कहानी श्री नमस्कार महामंत्र के दिव्य प्रभाव से गुथी हुई है ।सुनकर तेरा मन जरूर प्रहलादित होगा ।
‘अच्छा… तब तो जरूर सुनाइये…!’ साध्वीजी ने कहानी शुरू की :
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