दिन के दो प्रहर पूरे हो गये थे ।
तीसरे प्रहर में स्नान-भोजन और विश्राम करके, चौथे प्रहर की शुरूआत में राजा-रानी ने इन्द्र सभा सी राजसभा में प्रवेश किया। राजसभा राजपुरूषों एवं महाजनों से खचाखच भरी हुई थी ।
कलाकारो के वृन्द अपनी अपनी जगह पर बैठ गये थे।
सर्वप्रथम नगर के प्रमुख श्रेष्ठि ने खड़े होकर, महाराजा के पास आकर, सिर झुकाकर स्वर्णथाल में रखें हुए कीमती रत्न भेंट किये। इसके बाद नगर के अन्य श्रेष्ठियों ने एक के बाद एक आकर महाराजा को भेंट सौगातें अर्पण की।
तत्पश्चाद् महामंत्री ने खड़े होकर, महाराजा को प्रणाम कर के, सभा को संबोधित करते हुए अपना वक्तव्य दिया। वसंतपुर में महाराजा के आगमन का प्रयोजन बताया एवं महाराजा-महारानी के गुण गाये ।
नगरश्रेष्ठि ने खड़े होकर महाराजा के आगमन से उन्हें और पूरे नगर के नागरिकों को कितनी खुशी हुई है…… यह बताया ।
और तुरंत ही नृत्यांगनाओं के वृन्द ने समूहस्वर में गीत और नृत्य का कार्यक्रम प्रस्तुत किया । एक घटिका तक अदभुत नृत्य प्रस्तुत कर के महाराजा को प्रसन्न कर दिया ।
तत्पश्चात् नगर के सुप्रसिद्ध गायक वृन्द ने अपने गीत प्रस्तुत कर के सभा का मन मोह लिया । दो घटिका तक गीत-गान व वादन का कार्यक्रम चलता रहा ।
फिर हास्यकारों के वृन्द ने विविध अभिनय के द्वारा एवं हंसानेवाली बातें कर के पूरी सभा को हंसा-हंसाकर लोटपोट लोटपोट कर दिया ।
दो प्रहर पूरे हो गये ।
सभा का विसर्जन हुआ ।
राजा-रानी हर्षविभोर हो उठे थे। वसंतपुर में उन्हें अपना आना सार्थक प्रतीत हो रहा था।
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