महाराजा का स्वागत करने के लिए 108 युवान, एक से एक सुंदर कपड़े पहनकर, विविध वाद्य बजाते हुए, नगर के बाहर जा रहे थे । उनके पीछे 1008 सोभाग्यवती-सुहागन स्त्रियां सिर पर स्वर्णकलश लेकर, मंगल गाती हुई चल रही थी । उनके बाद सुंदर सजाए -सवारे हुए 108 मदमस्त हाथी अपनी ही मस्ती में चल रहे थे । उसके बाद 1008 उच्चकोटि के अश्व पर आरूढ़ होकर शस्त्रसज्ज सैनिक चल रहे थे । और पीछे हजारो स्त्री-पुरुष उत्साह में झूमते हुए चल रहे थे ।
वसंतपुर का यौवन सोलह कला पर खिल उठा था । हर्ष की किलकारियो से आकाशमंडल व्याप्त ही उठा था । राजा-रानी वसंतपुर के प्यारभरे वातावरण से मुग्ध हो उठे । प्रजा के अपार प्रेम ने उन्हें गदगद कर दिया ।
नगर के भव्य और अदभुत कला से युक्त प्रवेशद्वार पर राजपुरोहित ने महाराजा के ललाट पर कुमकुम का तिलक किया, नगरशेष्ठी ने खुशबूदार फूलो के हार पहनाए, कुमारिकाओं ने सोने चांदी के फूलों से स्वागत किया । सुहागन नारीवृन्द ने आरती उतार कर राजा-रानी का अभिवादन किया । राजगुरु ने मंगल श्लोकों का मधुर गान किया और शोभायात्रा का प्रारम्भ हुआ । लोगो ने हर्षध्वनि की ।
शोभायात्रा राजमार्ग पर घूम फिर कर राजमहल के पास पहुँची ।
महामंत्री ने पहले ही से प्रजाजनों के यथायोग्य सन्मान राजा ने किया और स्त्रियों को रानी ने सन्मानहित किया । नगरजनो को बिदा कर के राजा अपने परिवार के साथ राजमहल की ओर चले ।
‘विमानछन्दक’ नामक भव्य राजमहल में प्रवेश किया । महल की सुंदरता, भव्यता और विविध सुविधाओं से युक्त व्यवस्था देखकर राजा-रानी और राजपरिवार प्रसन्न हो उठा । रानी वसंतसेना ने कहा : ‘सुंदर ! बहुत ही सुंदर ! यहां पर मुझे तो बहुत ही अच्छा लगेगा ! स्वामीनाथ, आपको भी यहां अच्छा लगेगा….!’
महाराजा ने रानी के सामने देखा । उनके चेहरे पर स्मित निखर आया । महामंत्री ने कहा : ‘आज दिन के चौथे प्रहर मे राजसभा का आयोजन किया है । संध्याकालीन भोजन के पश्चात रात्रि में पहले व दूसरे प्रहर में भी कलाकारों के गीत-नृत्य एवं अन्य विविध कार्यक्रम रखे गए है !’
‘हम सभी कार्यक्रम में उपस्थित रहेंगे ।’ महाराजा ने अपनी सहमति दी । महामंत्री चले गये । परिचारिकाएं राजा-रानी को उनके खंड की ओर ले गई ।
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