अंगदेश की राजधानी थी चंपानगरी ।
चंपानगरी सुन्दर थी और समृध थी ।
राजा रिपुर्मदन ने चंपा को सजाया – संवारा था। चंपा की प्रजा मे शिक्षण एवं संस्कार सिंचे थे। राजा स्वयं आहृत धर्म का उपासक था। फिर भी अन्य धर्मों के प्रति वह सहिष्णु था । राजा मे न्यायनिष्ठा थी , प्रजा के प्रति राजा को वत्सलता थी तो प्रजा भी राजा के प्रति वफादार थी ।
आज राजा रिपुर्मदन की राज्यसभा नागरिकों से खचाखच भरी हुई थी। चुं की आज राजकुमारी सुरसुन्दरी एवं श्रेष्ठीपुत्र अमरकुमार के बुध्दिकौशल की परीक्षा होने वाली थी।
राजसिंहासन पर महाराजा रिपुर्मदन आरुढ़ हुए थे। उनके समीप के आसन पर श्रैष्ठवयृ घनावह सुन्दर वस्त्र एवं मूल्यवान अंलकार पहने हुए बैठै थे। महाराजा की दूसरी ओर श्री सुबुद्धि विराजमान थे।
सुरसुन्दरी ने श्रेष्ठ वस्त्रो का परिधान किया था। गले मे कीमती रत्नों का हार , कानो मे कुण्डल, दो हाथ मैं मोती जडे कंगन और पैरो मे नुपुर धारण किए हुए थी।आखों में काजल था और होठ तांबुल की रक्तिमा से युक्त थे। हजारों आखें उसकी ओर बंधी हुई थी।अमरकुमार भी अपने वैभव के अनुरूप वस्रालंकार धारण किये हुए था। उसका शरीर मजबूत था। उसकी काति देदीप्यमान थी। उसकी आंखों में चमक थी।उसके ललाट पर तेजस्विता झलक रही थी।
राजसभा का प्रारंभ माँ सरस्वती की मंगल प्राथना से हुआ। महाराजा रिपुमदंन ने राजसभा को संबोधित करते हुए कहा- “प्यारे सभासदों एवं नगरजनो! आज का यह अवसर हम सब के लिए खुशी का प्रसंग हैं। आज कुमारी सुरसुन्दरी के बुद्धिकौशल की और श्रेष्टि श्री घनावह के पुत्र अमरकुमार के बुद्धि वैभव की परीक्षा होगी। इन दोनों ने महापंडित श्री सुबुद्धि की पाठशाला मे अध्ययन किया है। विविध कलाओ मे दोनों पारंगत हुए है। अनेक विषयों का श्रेष्ठ अध्ययन इन्होंने किया है।आह्रत धर्म के सिध्दांतो का भी सुन्दर ज्ञान प्राप्त किया है। आज यहां सबसे पहले अमरकुमार कोई बौद्धिक समस्या प्रस्तुत करेगा और राजकुमारी उस समस्याएं को अपनी बुद्धि की कुशलता से सुलझायेगी। अमरकुमार तीन समस्याएं रखेगा सुरसुन्दरी के आगे।सुरसुन्दरी उसका जवाब देगी। इसके बाद कुमारी तीन समस्याएं रखेगी अमरकुमार के समक्ष ओर अमरकुमार को उसका जवाब देना होगा।आखिर में से एक एक समस्या अमर ओर सुन्दरी दोनों से पूछूंगा।उसका जवाब अमर ओर सुरसुन्दरी देगें।इस ढंग से आज का कार्यक्रम होगा”।
आगे अलगी पोस्ट मे..