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मन की मुराद – भाग 2

राजा अरिदमन और रानी रतिसुन्दरी में सारी विशेषताए सामान रूप से थी, इसलिये उनका गृहस्त जीवन निरापद था। उनका धर्मपुरुषार्थ निर्विघ्न था और सुरसुन्दरी के अंतर बाह्य व्यक्तित्व विकास भी वे उच्चस्तरियो कर सकते थे।
आज ये दंपति चिंतामग्न बने हुए थे। अब वे सुरसुन्दरी की शादी मे विलंब नही करना चाहते थे। उम्र तो शादी के लीए योग्य थी ही पर उसकी जवानी उसकी उम्र से भी ज्यादा मुखरित हो उठी थी। ऐसी युवा- वस्था मे प्रविष्ट पुत्री पितग्रह में ही रह रहे यह उचित नहीं है यह बात राजा रानी भली भाती जानते थे पर शवसुरगृह मिलना भी चाहिए न ?।
स्वामीन् आप चाहते है वेसी सभी योग्यता वाला वर न मिलातो फिर क्या एकाध योग्यता कम हो पर अन्य योग्यताएँ हो वेस कुमार पसंद करे तो?
तो सुन्दरी दुखी होगी! किस योग्यता की कमी को स्वीकार लेना यही मेरी समझ में नहीं आता पर आखिर सुख दुःख का आधार तो जीवात्मा के अपने ही शुभाशुभ कर्म पर निर्भर है न?
तुम्हारी बात सही हे देवी , फिर भी बेटी को उसके प्रारब्ध के भरोसे छोड़ी तो नहीं जा सकती न अपन से हो सके उतने प्रयत्न को करने ही चाहिए न ?।
पर ऐसा वर यदि मिलना ही न हो तो?
रातिसुन्दरी के स्वर में दर्द था।
मिलता है, ऐसा एक सुयोग्य वर।
कौन??
पर वो राजकुमार नहीं है ..
राजवंशीय नहीं है।
तो फिर??
वह है श्रेष्ठिपुत्र … वरिकवंशिय.
रतीसुन्दरी विचार से डूब गयी. उसने राजा के सामने देखा और पूछा : आप चाहते हो वे सारी योग्यताएँ उसमे है?
हाँ.. उसमे सभी योग्यताओ का सुभाग समन्वय है. .और मेने तो उसे नजरो नजर देखा ही है। तुम भी उससे परिचित हो और सुन्दरी भी उसे भली भाती जानती है..
कौन…?

जानिए अगली पोस्ट मे…

मन की मुराद – भाग 1
May 16, 2017
मन की मुराद – भाग 3
May 16, 2017

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