कुमुदिनी मौन रही ।
‘तुम कुमार से बात कर लेना ।’महाराजा ने कहा ।
‘कौंन सी बात ?’
‘उसकी शादी की, उसके राज्यभिषेक की और अपने गृहत्याग की ।’
‘मै बात करूंगी…. पर वह नहीं मानेगा तो ?’
‘तुम मना सकोगी ।’
‘नही मानेगा तो आपके पास भेज दूंगी ।’
दोंनो खामोश हो गये ।
‘एक बात पूंछू ?’ कुमुदिनी बोली ।
‘पूछो ।’
‘इतना जल्दी वैराग्य होने का कारण क्या है ?’
‘यह संसार ही वैराग्य का कारण है देवी !’
‘फिर भी कोई विशेष निमित्त !’
‘निमित्त की बात भी करता हूं :
‘उस ब्राह्मणपुत्र अग्निशर्मा की काफी खोज की । वह नहीं मिला, न कुछ समाचार मिले । उसकी जुदाई के दुःख में रो रो कर कल सबेरे उसकी माँ मौत की गोद में समा गई…और शाम को उसके पिता यज्ञदत्त पुरोहित की मृत्यु हो गई ! बस, यही निमित्त है ! एक पूरे परिवार ला नामोनिशान मिट गया ।’
‘क्या कह रहे है आप ? बेचारे उस ब्राह्मण दम्पति की पुत्रवियोग में मृत्यु हो गई ? ओह ! कैसा है ये संसार ! जीव की राग दशा कैसी है ?’
‘पूरे नगर में हाहाकार मच गया है ।’
‘घटना भी तो वैसी करुण है ना !’
‘इसलिए अब हम जल्दी जल्दी इस ग्रहवास से छुटकारा प्राप्त कर ले ।’
रानी कुमुदिनी ने गुणसेन के खंड में प्रवेश किया । रानी पहली बार ही गुणसेन के कमरे में गई थी । गुणसेन जगता हुआ पलँग पर लेटा था । माँ को कमरे में आई देखकर, वह सहसा खड़ा हो गया । माँ के पास जाकर उसको प्रणाम किया ।
‘मां, तुझे क्यो आना पड़ा ? मुझे बुला लिया होता !’
‘बेटा ! बहुत दिनों से रानीवास से बाहर निकली नही थी…. और फिर तेरे साथ एक-दो महत्वपूर्ण बातें करनी थी, इसलिए मै स्वयं ही चली आई ।’ माँ और पुत्र दोनो पलंग पर बैठे ।
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