वयोवृद्ध द्विजश्रेष्ठ भी पूजा-पाठ में बैठने की तैयारी ही कर रहे थे, इतने में उन्होंने सोमदेवा को घर मे प्रवेश करते हुए देखा, उन्होंने पूछा :
‘बेटी, तुझे और तेरे पुत्र को कुशल है ना ?’
‘पूज्य, आज हम दोनों जब ब्रह्ममुहूर्त में जगे तब अग्नि का बिछौना खाली था। अग्नि का कहीं पता नहीं था । हमने घर मे मुहल्ले तलाश की, पर अग्नि नही मिला !’
‘कही वे दुष्ट लड़के तो उसे उठा नही गये ?’
‘वे लोग कभी भी इस तरह रात के समय उसे नही ले गये। और उठा ले जाए तो कुछ आवाज होती… अग्नि की चीख… चिल्लाहट सुनाई देती, वैसा कुछ सुनाई नही दिया है ।
‘ तब फिर ?’
‘कुछ समझ मे नहीं आ रहा है। वह अकेला कभी भी घर के बाहर निकलता ही नही है ! रात में तो बिल्कुल नही !’
‘बेटी, तू जा मै ईश्वर -पूजा कर के तेरे घर पर आता हूं।
ब्राह्मण समाज के वयोवृद्ध अग्रणी की यज्ञदत्त-सोमदेवा के प्रति गुणद्रष्टि थी । उनके प्रति सहानुभूति थी । अग्निशर्मा के उत्पीड़न से वे दुःखी थे। वे पूजा-पाठ में बैठे । सोमदेवा अपने घर पर गई । यज्ञदत्त ईश्वरध्यान में लीन थे ।
सोमदेवा छलकती आंखों से घर काम निपटाती है । मन में तो अग्निशर्मा के ही विचार चल रहे थे। ‘यदि कृष्णकांत या उसका कोई मित्र, अग्नि को लेने के लिये आये तो समझना होगा की वे लोग अग्नि को लेकर नही गये है। यदि लेने न आये…. तो मानना होगा कि वे लोग ही उसे उठा ले गये है। उनका समय…. अग्नि को ले जाने का समय हो चुका है। दिन के प्रथम प्रहर की अंतिम दो घड़ीयो में वो लोग आते है !
परंतु आज न भी आये ।
जैसे कि कल तीन दिन के बाद,अग्नि को ले गये थे, वैसे और तीन चार दिन तक लेने नही आये, यह भी तो संभव है।’ सोमदेवा उलझ गई । उसे समझ मे नही आया कि आखिर अग्नि को ले कौन गया है ? पुत्र स्नेह से वह व्यतीत एवं व्याकुल हो उठी ।
– यज्ञदत्त पूजा-पाठ करके खड़े हुए ।
-द्विजश्रेष्ठ ने घर मे प्रवेश किया
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