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राजकुमार का पश्चाताप – भाग 10

माँ और पुत्र दोनो पलंग पर बैठे ।
माँ ने कहा
‘वत्स, इस महीने मे वसंतसेना के साथ तेरी शादी तय कर दी है ।’ वसंतसेना जो कि अंगनपुर की राजकुमारी थी, उसके साथ गुणसेन कि सगाई-मंगनी पहले ही हो चुकी थी ।
‘फिर, दूसरी बात ?’ गुणसेन ने पूछा ।
‘इसके बाद जो अच्छा मुहूर्त आये… उस दिन तेरा राज्यभिषेक करना है !’
‘पर इतनी जल्दबाजी क्या है, मां ?’
‘चूंकि, तेरे पिताजी का मन इस संसार के प्रति विरक्त हो चुका है। वे शीघ्रप्रतिशीघ्र अरण्यवास स्वीकार करना चाहते है !’
कुमार गुणसेन रो पड़ा। माँ की गोद मे सिर छुपाकर वह रुदन करने लगा ।
‘वत्स,क्यो रो रहा है ? जीवन की उत्तरावस्था आत्मकल्याण के लिए ही होती है ! तुझे भी तो भविष्य में यहीं रास्ता अपनाना है ।’
सच बात है माँ। परंतु चार-पांच साल का विलंब तो किया ही जा सकता है ।’
‘बेटा, वैराग्य विलंब को सहन नही कर पाता है ।’
‘परंतु, तू तो मेरे साथ रहेगी ना ?’
‘वत्स, तेरे पिताजी के साथ मेरी बातचीत हो गई है !’
‘क्या बात हुई ?’
‘मै भी उन्ही के साथ ही अरण्यवास में जाऊंगी !’
‘फिर ?’
‘तुझे राजा बनकर प्रजा का पालन करने का है। धर्म को जीवन मे जीना है। साधु पुरुषो का आदर करना है, परमात्मा को दिल मे बसाना है, पापों का डर रखना है।
‘एक प्रहर तक पुत्र व माता वार्तालाप करते रहे।

कुछ दिनो बाद, अच्छे मुहूर्त मे
-राजकुमार गुणसेन की शादी राजकुमारी वसंतसेना के साथ हो गई ।
-राजकुमार के राज्यभिषेक की घोषणा नगर में एवं राज्य में हो गई ।
राज्यभिषेक-महोत्सव के समय महाराजा ने स्वयं अरण्यवास स्वीकार करने की घोषणा कर दी ।
-एक आंख में खुशी…. और एक आंख में दर्द के साथ प्रजाजनों ने राजा की महानता गाई ।
-एक दिन राज्य के लाखों स्त्री-पुरुषों ने राजा-रानी को भरे हुए ह्रदय से और आंखों में आंसू के साथ बिदाई दी ।
-राजा-रानी तपोवन की ओर चले गये ।
-तब तक किसी को पता नही लग पाया था कि अग्निशर्मा कहां गया ?
उसका क्या हुआ ?

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