अग्निशर्मा ने तपोवन में प्रवेश किया ।
क्लान्त, क्षमित, व्यथित और मुरझाए हुए चेहरेवाले अग्निशर्मा को देखकर तपोवन के तापस उसके इर्दगिर्द एकत्र हो गये। एक तापस ने चिंतातुर स्वर में पूछा :
‘भगवंत , क्या आपका पारणा नहीं हुआ ?’
‘दूसरे तापस ने पूछा : ‘आप पारणा किये बगैर के मुरझाये हुए शरीरवाले क्यों दिख रहे हैं ?’
तीसरे तापस ने कहा : ‘क्या अपने पारणा नहीं किया है ?’
चौथे तापस ने पूछा : ‘क्या अभी तक आप महाराजा गुणसेन के वहां पारणा करने के लिए गये ही नहीं हैं ?’
आम्रवुक्ष के नीचे आसीन होकर अग्निशर्मा ने बड़ी शांति से उन तापसों से कहा :
‘महानुभाव , मै राजा के महल पर गया था , परंतु राजा का शरीर अस्वस्थ था , शिरोवेदना से राजा त्रस्त था । इसके कारण समग्र राजपरिवार उद्विग्न था , चिंतित था ।
किसी की आंखों में आंसू थे…. कुछ ललाट पर हाथ रखे हुए बैठे थे… कोई ठंडी आहें भर रहे थे । कोई राजा के आरोग्य के लिए देवी…. देवताओं की मानता मान रहे थे। निरे शोक का वातावरण छाया हुआ था वहां पर। मैं वह देख नहीं सकता था । इसलिए वापस लौट आया। ‘
एक तापस ने कहा : ‘सही बात है आपकी । महाराजा तीव्र वेदना से व्यथित होंगे , वर्ना वे आप पर अत्यंत प्रीति और आदर रखते हैं….। वे खुद ही राजमहल के द्वार पर खड़े होते ।’
दूसरे तापस ने कहा : तापसों के लिए उनका स्नेह…. उनकी भक्त्ति तो हमने राजमहल में अनुभव की ही थी ना ? वे आपके पारणे के दिन को भुला ही नहीं सकते। परंतु यकायक शरीर ही अस्वस्थ हो उठा… और राजा आपको पारणा नहीं करवा सके ।’
तीसरे तापस ने कहा : ‘उसमे तो शंका ही कहाँ है ? आपकी ओर तो महाराजा को अत्यंत बहुमान है । पाँच दिन पहले जब वे तपोवन में आये थे तब उन्होंने कुलपति के समक्ष आप ही के अदभुत गुणों की जी भर कर प्रशंसा की थी। मैंने खुद अपने कानों से वह सब सुना था ।’
चौथे तापस ने कहा : ‘जब महाराजा को ठीक हो जाएगा , तब उन्हें आपकी ही स्मृति होगी । आपका पारणा याद आएगा…. और वे महल में से सीधे यहीं पर तपोवन में दौड़े आयेंगे । वे दुःखी-दुःखी हो उठेंगे ।
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