रानी ने समीप के खंड में सोई हुई…. परिचारिकाओं को जगायी। परिचारिकाएं महाराजा के कमरे में आई एवं महारानी की आज्ञा के लिए प्रतीक्षारत होकर खड़ी रही ।
‘महाराजा को भयंकर शिरोवेदना हो रही है। वेगराज को बुलाने के लिए प्रतिहारी गये हैं । तुम यहीं पर खड़ी रहो । वेगराज अायेंगे , महाराजा के रोग का निदान करेंगे , फिर औषध – उपहार चालु करने होंगे ।’
‘महामंत्री को बुला लाएं क्या ?’
महामंत्री तो क्षितिप्रतिष्ठतनगर गये हुए हैं । पर अन्य चार विचक्षण मंत्री , मंत्रिगुह में हैं । उनमें से मंत्री यशोधन को जगाओ ।’
दो परिचारिकाएं महल के द्वार पर गई । महल के रक्षकों को मंत्री यशोधन को जगाकर महाराजा के कमरे में भेजने को कहा ।
राजवैध , अन्य पाँच विचक्षण वैधों के साथ अनेक औषधियाँ लेकर राजमहल में आ पहुँचे । मंत्री यशोधन ने साथी मंत्रियों को भी जगाये और वे सब भी राजमहल में आ पहुँचे ।
महल के दिये प्रकाशवान हो उठे , परंतु सभी लोगों के चेहरे फीके-निस्तेज हो गये थे। महाराजा की शिरोवेदना बढ़ती ही जा रही थी। वैधोंने महाराजा के शरीर को जांचा और औषध दिया। अन्य औषध तैयार करने के लिए परिचारिकाओं को मार्गदर्शन दिया । महारानी वसंतसेना चिंतातुर चेहरे से महाराजा का सिर दबाती हुई थोड़ी-थोड़ी देर से महाराजा से आहिस्ते से पूछती है…. ‘नाथ, अब कैसा लग रहा है ? दर्द कम हुआ ?’ महाराजा इशारे से मना करते हैं ।
चिंतित रानी वैधों से कहती है :
‘अभी वेदना कम नहीं हुई है ।’
वेधराज आश्वासन देते हुए कहते हैं : ‘धीरे धीरे वेदना अवश्य कम होगी ।’
‘धीरे नहीं , वेधराज । वेदना शीध्र ही कम होनी चाहिए।’ महारानी ने आग्रह करते हुए कहा ।
वैधों ने आपस में रोग और चिकित्सा के विषय में परामर्श किया। महाराजा के सिर पर रत्नों के लेप का विलेपन किया गया। तत्काल वेदना का शमन करनेवाली औषधियाँ दी गई। परंतु वेदना कम होने की बजाए बढ़ने लगी ।
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