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नई कला – नया अध्य्यन– भाग 5

मां के मुहँ से अमरकुमार का नाम सुनकर सुरसुन्दरी पुलकित हो उठी। राजा ने अमरकुमार का नाम सुनते ही रानी से कहा : ‘हाँ , अभी पंड़ितजी भी अमरकुमार की बहुत तारीफ़ कर रहे थे, बेटी, अमरकुमार तुम्हारी पाठशाला में श्रेष्ठ विद्यार्थी है, क्यों ?’
‘हाँ पिताजी, पंड़ितजी की अनूपसथति में वह ही सबको पढ़ाता है। उसकी ग्रहरणशक्ति और समझाने का ढंग गजब का है। उसका भी अध्य्यन अब तो पूरा हो चूका है।’
‘बेटी , एक दिन मैं राजसभा में तेरी और उस अमरकुमार की परीक्षा लूंगा। तुम्हारी बुद्धि और तुम्हारी ज्ञान की कसौटी होगी उस समय।’
सुरसुन्दरी तो प्रफुल्लित हो उठी, वह मन ही मन अमरकुमार से बतियाने लगी थी।
‘अच्छा,बातो मां , मैं धनावह सेठ के वहां जाकर साध्वीजी के बारे में तलाश कर लूंगी। सुरसुन्दरी त्वरा से रानी के खंड में से निकल गयी।
सुरसुन्दरी ने सुन्दर वस्त्र और अलंकार पहने। रथ में बैठकर वह श्रेठी धनावह की हवेली पर पहुँची। हवेली के झरोखे में खड़े अमरकुमार ने सुरसुन्दरी को रथ से उतरते देखा। उसे ताज्जुब हुआ….’अरे, यह तो सुरसुन्दरी । यहां कैसे आयी? अभी इस वक्त ? और फिर आयी भी अकेली लगती है? महारानी तो साथ है ही नहीं। इस तरह पहले तो कभी आयी नहीं, सुरसुन्दरी । आज क्या बात है? ओह …. मां को खबर तो कर दू।।

आगे अगली पोस्ट मे….

नई कला – नया अध्य्यन – भाग 4
March 31, 2017
नई कला – नया अध्य्यन – भाग 6
March 31, 2017

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