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नदिया सा संसार बहे – भाग 3

अमरकुमार ने अपने विदेशप्रवास की बातें की । बेनातट नगर के महाराजा गुणपाल के आग्रह से एवं सुरसुन्दरी के दबाव से गुणमंजरी के साथ कि हुई शादी की बात कही । राजा-श्रेष्ठि दोनों प्रसन्न हो उठे ।

‘अमर, तूने महाराजा गुणपाल को चंपा पधारने के लिये निमंत्रण दिया या नही  ?’

‘ओह,…. यह बात तो मेरे दिमाग से निकल ही गई पिताजी  !’

‘तब तो शीघ्र ही आमन्त्रण भेजना चाहिए ।’ महाराजा रिपुमर्दन ने धनावह सेठ के प्रस्ताव को बधा लिया । ‘अच्छा है, बेनातट से आये हुए सैनिकों को वापस भेजना है । उनके साथ निमंत्रण भेज दूंगा ।’

‘पर कुमार, उन सुभटो को आठ दिन तक तो चंपा का आतिथ्य मनाने देना  ।’

‘जरूर….. जरूर…. उन्हें यहां रहना अच्छा भी लगेगा।

‘अब तुम भी आराम करो कुमार, काफी ज्यादा श्रमित हुए होंगे…. यात्रा से, दीर्घ समुद्रियात्रा से  !’

सभी खड़े हुए । अपने अपने स्थान पर चले गये ।

दूसरे दिन जब अमरकुमार महाराजा से मिलने के लिये राजमहल में गया तब महाराजा ने अमरकुमार से कहा  :

‘कुमार…. मै चाहता हूं…. अब तुम रोजाना राजसभा में आया करो ।’

‘मै आऊँगा जरूर…. पर मुझे राजकाज में तनिक भी रुचि नही है । ‘

‘वह रुचि जगानी पड़ेंगी… बढ़ानी पड़ेंगी ।  कुमार चूंकि भविष्य में यह तुम्हे ही सम्भालना है । तुम तो जानते ही हो…. की मेरी बेटी कहो या बेटा कहो… एक सुरसुन्दरी ही है ।’

‘महाराजा  ! आपकी बात सही है परंतु….’

‘परन्तु क्या, कुमार  ?’

‘मेरा जीव है व्यापार का… राजकार्य में मै कितना सफल हो पाऊंगा…. यह मैं नही जानता हूं । पर एक बात है, मेरे साथ बेनातट नगर से मेरा एक दोस्त आया है । वह था तो बेनातट राज्य का मुख्य सेनापति….परन्तु हमारी तरफ से गाढ़ स्नेह से प्रेरित होकर वह हमारे साथ आया है । उस का पराक्रम भी अद्वितीय है और बुद्धि में भी वह बृहस्पति को तुलना करें वैसा है । उसे यदि मंत्रिपद दिया जाये तो वह काफी उपयोगी सिद्ध होगा । हालांकि इस मृत्युंजय के बारे में तो मेरे से भी ज्यादा जानकारी आपकी पुत्री ही दे देगी ।’

‘तुम ठीक कह रहे हो कुमार, अपन मृत्युंजय को सेनापति पद और मंत्रीपद––यों दो जिम्मदारी सौप देंगे । ‘

‘तब तो उसकी सही कद्रदानी होगी  ।’

‘और अपन को एक पराक्रमी और बुद्धिशाली राजपुरुष मिलेगा  ।’

महाराजा ने सुरसुन्दरी के साथ परामर्श कर के मृत्युंजय को दो पद दे दिये।

सुरसुन्दरी के साथ मंत्रणा कर के मृत्युंजय ने सब से पहले गरीबो को दान देना प्रारंभ किया । राज्य के अधिकारी वर्ग का दिल जीत लिया।  सब के साथ मधुर संबंध बना लिये।  राज्य की तमाम परिस्थिति का अध्धयन किया और राज्य के उत्कर्ष के लिये जीजान से काम करना प्रारंभ कर दिया।

 

आगे अगली पोस्ट मे…

नदिया सा संसार बहे – भाग 2
November 3, 2017
नदिया सा संसार बहे – भाग 4
November 3, 2017

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