नदिया सा संसार बहे
जब अमरकुमार के जहाज चंपा के निकट पहुँचे तब अमरकुमार ने एक जहाज को संदेश देकर आगे भेजा, समाचार देने के लिये ।
संदेशवाहक ने चंपानगरी पहुँचकर महाराजा रिपुमर्दन और नगरश्रष्टि धनावह को अमरकुमार के आगमन का संदेश दिया । राजा और श्रेष्ठी दोनों समाचार सुनकर हर्ष से उत्फुल्ल हो उठे । राजा ने मंत्री को बुलाकर पूरे नगर को सजाने की आज्ञा दी ।
नगर के राजमार्गो को पचरंगी फूलो से सजाया गया । जगह जगह पर सुगंधित धूप किया गया । रास्तो को स्वच्छ समतल और सुशोभित किये गये । रास्तों पर सुगंध भरपूर पॉर्न छिटवाया गया । प्रजाजनों ने अपने ग्रहद्वारों पर तोरण बाँधे, बाजारों को सजाये गये ।
अमरकुमार परिवार के साथ नगर के बाहरी इलाके में आ गया था । महाराजा और धनावह श्रेष्ठि ने भव्य स्वागतयात्रा का आयोजन किया था । हजारों नगरवासी जन अमरकुमार का भव्य स्वागत करने के लिये नगर के बाहर आ पहुँचे । मंत्रीवर्ग, अधिकारी लोग और श्रेष्ठिवर्ग सभी ने अमरकुमार का भव्य स्वागत किया ।
अनेक वाजित्रो के नाद के साथ अमरकुमार ने नगर प्रवेश किया । महाराजा के द्वारा भेजे गये भव्य स्वर्णरथ में वह बैठा ।आसपास रंभा और उर्वशी जैसी सुरसुन्दरी और गुणमंजरी बैठी । चंपानगरी के राजमार्ग पर से शोभायात्रा गुजरती हुई राजमहल की ओर आगे बढ़ने लगी । मंगल गीत गाये जा रहे थे । अक्षत और पुष्पो से नगर की स्त्रीयां बधाई दे रही थी ।
नगर के प्रमुख श्रेष्ठिगण मूल्यवान भेट-सौगाते दे रहे थे । कुशलपुच्छा करने थे । अमरकुमार विनम्रता से हाथ जोड़कर उसका अभिवादन कर रहा था । अमरकुमार का विपुल वैभव उसके पीछे ही वाहनों में आ रहा था । मृत्युंजय घोड़े पर सवार होकर सौ सैनिको के साथ आगे चल रहा था । मालती दो हाथों में दिव्य पंखे लेकर अमरकुमार के पीछे रथ में खड़ी थी ।
सारी चंपानगरी उत्सव में पगलायी जा रही थी । शोभायात्रा राजमहल में पहुँची । महाराजा रिपुमर्दन महल की सीढ़ियां उतरकर नीचे आये । अमरकुमार का स्वागत किया । सुरसुन्दरी ने और गुणमंजरी ने रथ में से उतरकर महाराजा के चरणों में प्रणाम किया । रिपुमर्दन ने दोनों के सर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिये । बरसों के बाद बेटी को देखकर उनकी आँखें हर्षश्रु से भर आई ।
तीनो महल में गये ।
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