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मिलना अग्निशर्मा से! – भाग 5

स्वप्न के जैसी यह दुनिया है । कब जीवन – स्वप्न पूरा हो जाए… कौन कह सकता है ? ‘यह कार्य मैं कल सबेरे करूंगा’ ऐसा कौन बोल सकता है । कल जीवात्मा का जीवन होगा या नहीं…? इसलिए मैं तुम्हें किस तरह कह दूं कि पाँच दिन के पश्चात मैं तुम्हारे घर पर पारणा करने के लिए आऊंगा ।
राजेश्वर, जीवों के परिवर्तनशील स्वभाव भी धिक्कार पात्र है। सबेरे जो स्नेहभाव दिखता है , वह शाम को नहीं होता। शाम को जो भाव होता है… वह अगले दिन नहीं रहता है । इसलिए राजन , पारणे का दिन तो आने दीजिए।’
गुणसेन ने कहा : ‘महात्मन आपकी कही हुई बात बिल्कुल सही है । आपकी तत्त्वसभर वाणी भी यथार्थ है । परंतु यदि कोई विघ्न न आये तो पारणे के लिए आप अवश्य मेरे घर पधारें ।’
अग्निशर्मा ने कहा : ‘महाराजा , आपका यदि इतना तीव्र आग्रह है , तो मैं आपकी प्रार्थना का स्वीकार करता हूं ।’
‘आपकी अनहद कुपा हुई मेरे पर ।’ यों कहकर राजा गुणसेन खड़े हुए । तपस्वी को झुककर पुनः पुनः प्रणाम किये ।
‘महामंत्री , तुम राजमहल में जाओ । महारानी को यहां ले आओ…। और हां, साथ ही उत्तम पकवान , फल , मेवा वगैरह भोजन – सामग्री भी लेते आना साथ साथ। आज हम सभी तपस्वियों की भक्त्ति करेंगे । तुप वापस लौटो वहां तक मैं कुलपति के चरणों में बैठकर उनका धर्मोपदेश सुनूंगा ।’
–महामंत्री घोड़े पर बैठकर नगर की ओर चल दिये ।
–महाराजा गुणसेन ने कुलपति की पर्णकुटी में प्रवेश किया ।
‘महात्मन मैं आपको प्रणाम करता हूं ।’
‘राजन , तेरा कुशल हो ।’
‘भगवन , मेरी इच्छा आपकी भक्त्ति-पूजा करने की है । इसलिए मैंने मंत्री को नगर में भेजा है । मेरा परिवार और भोजनसामग्री यहां पर आये तब तक क्या मैं आपके चरणों में बैठ सकता हूं । आपके धर्मकार्य में खलल तो नहीं होगा न ?’
‘राजन , तुमको धर्मोपदेश देना , वह भी तो धर्मकार्य ही है ना ?
‘भगवन मुझे धर्मोपदेश देकर , मेरी पापी आत्मा को पुण्यशाली बनाने की कृपा कीजिए ।’
‘राजन, प्रतिदिन अतिथि को , साधु – संन्यासी को भक्त्ति और बहुमानपूर्वक दान देना चाहिए । गरीबों को, अनाथों को, अपंग – अपाहिजों को, और असहाय-लाचार लोगों को दया से दान देना चाहिए ।

आगे अगली पोस्ट मे…

मिलना अग्निशर्मा से! – भाग 4
March 16, 2018
मिलना अग्निशर्मा से! – भाग 6
March 16, 2018

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