बेवजह राजा को अंतपुर में आया देख पहले तो मदनसेना को अजूबा लगा पर दूसरे ही क्षण राजा का इरादा भांप गई l उसने राजा का स्वागत किया l उसे सत्कार दिया और अपने शयनखंड मे राजा को ले आयी l राजा की अस्वस्थता रानी से छिपी नहीं थी |
‘अभी इस वक्त कैसे आना हुआ ?’
‘एेसे ही चला आया….वह औरत आयी है न ? उसे कोई असुविधा तो नहीं है न….बस,यही पुछने के लिये आया था l’
‘कौन है वह औरत ?’
‘एक निराधार स्त्री है….धीवरों को एक मगरमच्छ के पेट में से जिंदा मिली है….वे मुझे भेंट कर गये है l’
‘तो अब इसका क्या करना है ?’
‘अभी तक मैने उसके साथ कुछ बातचीत नहीं की है….बात करु तब मालूम हो कि उसका इरादा क्या है !’
‘पर आपने कुछ सोचा तो होगा न उसके लिये….?’
‘सोचा तो है…पर….’
‘मेरे सामने आप इतना झिझक क्यो रहे है ? खुलकर कहिये ना….आपने क्या सोचा है….?
‘शायद….तुझे अच्छा न लगे l’
‘आपको जो पसंद….वह मुझे मंजुर होगा |’
‘सचमुच….?’
‘तो क्या….अापको मुझ पर भरोसा नहीं है….?’
‘भरोसा तो है पर….
‘पूरा भरोसा नहीं है ऐसा ही न ?’
‘नहीं नहीं…भरोसा तो पूरा हैl’
‘तो फिर कह दीजिये न अपने मन की बात l’
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