चार दिन से राजा मेरे साथ बोलते भी नही है । किसी गम्भीर सोच में उलझे हुए प्रतीत होते है ।’
‘मां, उन्हें भूख नही लगती होगी, मुझे तो इस समय जोरों की भूख लगी हैं । यहीं पर मंगवा ले…. हम दोनों साथ ही भोजन करेंगे ।’
‘रानी ने परियाचिका को भोजनखण्ड में भिजवाकर कुमार के लिए खाना मंगवा लिया। कुमार को भोजन करवाया। खुद ने भोजन नही किया। कुमार ने पूछा भी नही! भोजन करके कुमार ने, अग्निशर्मा के साथ खेलने को अपनी क्रूर तरकीबे बताई…। रानी चुपचाप सुनती रही। हालांकि कुमार की बातें उसे जरा भी अच्छी नही लगी। फिर भी उसने ममतावश कुमार को मौन इजाजत दे दी
कुमार को भरोसा हो गया कि ‘मेरी मां मेरे पक्ष में है, आज मुझे किसी का डर नही है ।’
– कुमार कूदता हुआ…. उछलता हुआ अपने कमरे में पहुँच गया ।
– पुरोहित यज्ञदत्त, अपने पुत्र अग्निशर्मा को शकट में डालकर घर पर पहुँचा । घर के कमरे में अग्निशर्मा को सुलाकर उसने घर का दरवाजा भीतर से बंद किया । अग्निशर्मा के शरीर पर हुए घाव और खून के दाग देखकर यज्ञदत्त और सोमदेवा रो पड़े । अग्निशर्मा के खून से सने हुए और फ़टे हुए कपड़े देखकर ‘आज उन शैतानो ने काफी जुल्म गुजारा लगता है ।’ यह बात समझ गये । गरम पानी मे अग्निशर्मा को स्नान करवाया । घाव पर औषध लगाया । और स्वच्छ कपड़े पहनाये ।
अग्निशर्मा ने ‘आज मेरे पर शिकारी कुत्ते को छोड़ा गया…,’यह बात नही की । चूंकि वह माता-पिता को ज्यादा दुःखी करना नही चाहता था। यक्षदत ने भी सुबह से लोगो को से एक ही बात कही थी :
‘अग्नि के मामा आकर अग्नि को ले गये है। रात को वपास उसे छोड़ जाएंगे ।’इसलिए नगर में शांति थी ।
सोमदेवा ने यज्ञदत्त से कहा : ‘आज तो उन नराधमों ने तीन दिन का इकठ्टा दुःख बरसा दिया है अग्नि पर । एक दिन वे लोग मेरे बेटे की जान लेकर ही सांस लेंगे । तुम आज की बात महाजन से करो ।’
यज्ञदत्त ने कहा : ‘मेरे मन मे सुबह से ही कशमकश चल रही है । क्या करूँ ? यदि महाजन को जाकर बात करता हूं तो बात महाराजा तक जाएगी । महाराजा कुमार को सजा करेंगे । इससे कुमार गुस्सा करेगा । रानी महाराजा से नाराज हो जाएगी । राजमहल में क्लेश होगा । कुमार के राक्षसी दोस्त मिलकर रात में अपने घर को आग ही लगा दे… हमे जिंदा जिन्दा ही जला डाले !’
अग्निशर्मा चुपचाप बिछौने में लेटा हुआ था । वह माता-पिता का वार्तालाप सुन रहा था ।
सोमदेवा ने पूछा : ‘तब फिर क्या करना ?’
यज्ञदत्त ने कहा : ‘ईश्वर इच्छा का सहारा लेना । ईश्वर को प्रार्थना करे कि राजकुमार की बुद्धि सुधर जाए और अग्नि पर कृपा उतरे ।’
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