गुणसेन महल के भीतरी खंड में बंधे हुए शिकारी कुत्ते को खोलकर उसे ले आया बाहर । लम्बी जंजीर उसके गले में बंधी थी । जंजीर के एक हिस्से पर एक बड़ी सी गोल कड़ी थी । उसे पकड़कर गुणसेन मैदान में आया । अग्निशर्मा मैदान के बीच बैठ गया था । कुत्ते ने उस पर हमला कर दिया । अग्निशर्मा जमीन पर लुढ़क गया । कुत्ता उसके सीने पर चढ़ गया और उसके नुकीले दाँत अग्निशर्मा के पेट मे घुस गये । अग्निशर्मा चित्कार कर उठा । गुणसेन और उसके दोस्त जोर-जोर से हंसने लगे । तालिया पीटने लगे । पेट में से दांत निकालकर कुत्ता उसके पेट को फाड़ डालने के लिए लपका की गुणसेन ने जंजीर खिंची…. कुत्ते को अग्निशर्मा से दूर कर दिया । अग्निशर्मा के पेट में से खून की धारा बहने लगी ।
कुत्ते की जंजीर कृष्णकांत ने अपने हाथ में ले ली । अग्निशर्मा दर्द से कराहता हुआ पेट के बल लेट गया था । कुत्ता उसकी पीठ पर चढ़ गया और पीठ को काटने लगा । अग्निशर्मा दहाड़ मार-मार कर रोने लगा। उसका शरीर खून से सन गया था। कृष्णकांत ने जंजीर खींच कर कुत्ते को अपने पास खीच लिया।
अग्निशर्मा को वही पड़ा हुआ रखकर, चारो मित्र महल में गये। शत्रुघ्न ने कहा : ‘यह ब्राह्मण का बच्चा मर तो नही जायेगा न ? यदि मर गया तो हम चारों की खैर नहीं रहेगी… समझना !’
गुणसेन ने कहा : ‘इतने में मर जायेगा क्या ? देख ना, इतने दूर से भी उसकी चीखे सुनाई दे रही है ! उस पटठे में काफी ताकत है !’
‘पर यदि शरीर में से काफी खून बह गया तो मर जाने का डर है ।’ कृष्णकांत ने संदेह व्यक्त किया ।
जहरीमल ने कहा : ठीक है, मै उसका खून बहना बंद कर देता हूं । मैं ऐसी जड़ी-बूटी ( वनस्पति ) को जनता हूं । उसका रस घाव पर डालने से खून बहना बंद हो जाएगा ।’ जहरीमल महल का दरवाजा खोलकर जंगल मे गया । वनस्पति लाकर…. उसका रस निकालकर अग्निशर्मा के शरीर पर लगाया ।
शत्रुघ्न ने कुछ सहमे सहमे अंदाज में कहा : ‘महाराजा को इस बात का पता लगेगा… महाजन को भी मालूम तो होगा ही… और नगरवासी लोगो को भी सब मालूम होगा !’
‘होने दो सब को खबर ! क्या कर लेंगे वे अपना ?’
‘शायद वे हमें देशनिकाल दे दे !’
‘तो… मेरी माँ के द्वारा वह सजा माफ करवा दूँगा ।’
‘और महाराजा ने क्षमा नही दी तो ?’
‘तब का तब देखा जायेगा ! अभी क्यो चिंता करता है ? हम यहां मस्ती मनाने आये है, मौज उड़ाने आये है…. चिंता में घुल-घुल कर परेशान होने के लिए नही।
आगे अगली पोस्ट मे…