चारो मित्रो को और तो कुछ कार्य था नहीं । बेबस होकर मजबूरी में तीन दिन तक घर मे बैठे रहना पड़ा था। गुणसेन ने मित्रो को योजना समझा दी। ‘हमे अब उसे राजमार्ग पर घूमाना नहीं है। किसी को हवा तक न लगे इस तरह, अग्निशर्मा को रथ में डालकर, नगर से चार कोस दूर जो महल है, उस महल पर ले जाना और वहीँ उसके साथ खेलना। शाम को अंधेरा हो तब नगर के बाहर ही जीर्ण देवालय के चबूतरे पर उसे रखकर, चारों मित्र अपने अपने घर पर सुरक्षित पहुँच जाए ।
सूर्योदय से पूर्व अग्निशर्मा को लिवा लाने के लिए जहरीमल और शत्रुघ्न तय हुए। गुणसेन और कृष्णकांत रथ लेकर ब्राह्मण मुहल्ले के बाहर खड़े रहेंगे। अग्निशर्मा को रथ में डालकर रथ जंगल की ओर भगा ले जाने का ।’
किसी को जरा भी शंका न आये, उस ढंग से चारों मित्र अलग होकर अपने अपने स्थान को चल दिये ।
दूसरे दिन तड़के ही जब सभी नगरजन मीठी नींद में सो रहे थे, तब जहरीमल और शत्रुघ्न यज्ञदत्त पुरोहित के घर पर पहुँच गये । दरवाजा खटखटाया । यज्ञदत्त ने दरवाजा खोले बगैर पूछा :
‘कौन है ?’
‘हम अग्नि के मामा !’जहरीमल ने जवाब दिया । यज्ञदत्त ने कभी भी जहरीमल की आवाज सुनी नही थी । क्योंकि ज्यादातर अग्निशर्मा को लेने के लिए कृष्णकांत ही आता था ।
यज्ञदत्त ने दरवाजा खोला ।
शीघ्र ही वेग से जहरीमल घर मे प्रविष्ट हुआ । शत्रुघ्न दरवाजे के पास खड़ा रहा । जहरीमल ने घर मे घुसकर सोये हुए अग्निशर्मा को उठाया… यज्ञदत्त उसे रोके या कुछ कहे इससे पहले तो जहरीमल घर के बाहर निकल गया । शत्रुघ्न ने यज्ञदत्त को धमकी दी : ‘अभी जरा भी हो-हल्ला किया तो तेरे बेटे को तू जिन्दा नही देखेगा । शाम को नगर के बाहरी मंदिर के चबूतरे पर से उसे ले आना ।’
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