पिताजी ने कहा – देवी, तुम्हारी बात सही है । यह एक सर्वसाधारण नियम है कि संतान में माता-पिता के रूप और आकार उतरे… परंतु हर एक नियम का अपवाद होता है कोई संतान ऐसी भी पैदा हो सकती है जिसमें माता-पिता के रूप… आकार न भी हो । अपना यह पुत्र गत जन्मों में बहुत घोर पाप कर के अपने परिवार में आया है !’
मेरी माँ ने पूछा था, ‘यह जीव अपने परिवार में क्यो पैदा हुआ ? किसी निम्न स्तर के कुल में क्यो नही पैदा हुआ ?’
पिताजी ने प्रत्युत्तर दिया था , ‘गत जन्म के इसके पापकर्मो में एक या अन्य रूप से हम भी हिस्सेदार रहे होंगे । इसलिए तो इस जन्म में इसके दुःख से हम भी दुःखी हो रहे है । भगवान ने-ईश्वर ने इस जीव को अपने ही घर मे जन्म दिया । देवी, कुछ एक पुण्य-पाप के फल इसी जन्म में प्राप्त होते है । कुछ पुण्य-पाप और जन्मों में अपना असर दिखाते है ।’
कई बार अपने माता-पिता अज्ञानी और पापी माता-पिता होते तो मेरा जन्म होते ही…. मेरा कुरूप शरीर देखते ही मुझे कचरे के ढेर में फिकवा दिया होता । किसी जंगली जानवर का मै शिकार हो गया होता । परंतु मेरा इतना कुछ पुण्य बचा था कि मुझे करुणामयी माँ मिली और ज्ञानी जैसे पिता मिले ।
मेरी माँ ने कभी मेरा दिल नही दुःखाया है….। नगर के हजारों लोगों ने मेरा उपहास किया है…. मुझे दुःख दिया है, पर मेरी वात्सल्यमयी माँ ने निरे प्यार से मुझे अपनी गोद में लेकर दया के आंसू ही गिराये है !
मै जनता हूं कि ऐसा कुरूप पुत्र किसी भी माँ को अच्छा नही लगता । किसी पिता को प्यारा नही लगता…। फिर भी ईश्वर की मेरे पर इतनी दया है की मेरे माता-पिता पूरा का प्यार मुझे मिला है । हाँ ,मेरे कारण, मेरे पर स्नेह के कारण वे दोनों बहुत दुःखी है ! मुझे खिलाये बगैर वह कभी खाना नही खाते ! मुझे सुलाये बगैर वे कभी नींद नही लेते ! मैने उन्हें बहुत दुःखी किया है । अब कब तक उन्हें इस तरह दुःखी करता रहूंगा ? जब तक मेरी जिंदगी है… तब तक ये राजकुमार या इसके दोस्त मुझे छोड़ने वाले नही है । मेरी घोर कदथर्ना करते ही रहेंगे । और इसके परिणाम– स्वरूप मेरे इन उपकारी माता-पिता को दुःख झेलना हो होगा !
आगे अगली पोस्ट मे…