सूरज डूबने की तैयारी में था | समुन्द्र में तूफान उठने के पहले की ख़ामोशी छायी थी | क्षितिज धुंधलके में घिर गयी थी | धनंजय का तो कलेजा मानों हाथ में आ गया था |
‘सुंदरी….ला….तेरा हाथ | मेरे हाथो में दे दे | कितना खुबसूरत समां है ? इस ढलते सूरज की सोगंध लेकर अपन एक दुसरे के होने का वादा करे |’
‘धनंजय !’ सुर सुंदरी ने पहली बार नाम लेकर पुकारा :
‘आज समुंद्र में तूफ़ान उठ रहा हो ऐसा लगता है |
अपना जहाज डावांडोल हो रहा है….’
‘नहीं रे सुंदरी….यह तो नाच रहा है….अपन दोनों के मिलन की खुशी में |’
‘पर यह नृत्य शकर का तांडव नृत्य हो गया तो !’
‘तू केसी बाते कर रही है ऐसे सुन्दर समय में |’
‘सच कह रही हूँ….धनंजय ! मुझे तेरा सर्वनाश नजर
आ रहा है….अब भी सोच ले वरना….’
‘सुंदरी !’ धनजय बोखला कर चीख उठा |
‘मै वास्तविकता बता रही हूँ….धनजय ! तेरा सर्वनाश सामने है….वरना तेरी बुद्धि भ्रष्ट नहीं होती |’
‘सुंदरी….क्या यही पुराण पाठ सुनाने यहाँ पर आयी है तू ? ‘ धनंजय की आँखों में चिंगारिया भड़कने लगी |
‘नहीं….धनंजय ! मैंने जो कहा वही मुझे कहना था और कुछ नहीं | अब भी मुझे बता दे…मेरे पति के पास तू मुझे सही सलामत पहुचाना चाहता है ?’
‘तेरा पति तो मर गया | अब तो तेरे सामने जिन्दा वह धनंजय ही तेरा पति है | समझ जा और आजा मेरे उत्संग में ….वार्ना आज मै तझे छोड़ने वाला नही !’ वो सुरसुन्दरी की ओर आगे बढ़ा ।
‘नमो अरिहंताणं ‘ के धीर गंभीर उच्चार के साथ सुरसुन्दरी ने डेक पर से छलांग लगायी समुद्र के अथाह पानी मे !
‘सुंदरी….सुंदरी….ओह! दोड़ो….दोड़ो…. सुंदरी समुद्र में गिर गयी….बचाओ….बचाओ !’
धनंजय व्याकुल हो उठा । उसकी आवाज सुनकर नाविक लोग दौड़ आये । पर इतने में तो जहाज उछालने लगा । सनसनाती हुई तूफानी हवा ने जहाज के पाल को चीर दिया । एक जोरदार धमाका हुआ और जहाज का खम्भा टूट गिरा । नाविक चिल्लाने लगे….सावधान….सावधान….सम्हालो….सम्हालो….’ उधर आकाश में कड़ाके होने लगे….धुंआधार बारिश होने लगी ।
सैकड़ो फिट ऊँची मौजे उठने लगी….और जहाज ने दरिये के अंदर समाधि ले ली । जहाज के साथ धनंजय और उसके आदमी….उसकी संपत्ति सभी कुछ समुद्र के तल में समा गये । जहाज के पटिये समुद्र के पानी पर तैरने लगे !