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राज को राज ही रहने दो – भाग 2

सुरसुन्दरी ने विनयपूर्वक मुनिराज से पूछा: गुरुदेव अभी मेरे पापकर्म कितने
बाकी हैं ? कहा तक मुझे इन पापकर्मो का भुगताना पड़ेगा कृपा करके..
भद्रे अब तेरे पापकर्म करीब करीब भुगत गए है …
अब भी जरा सतप्त मत बन। बेनातट नगर मैं तुझे तेरे पति का मिलन हो जायेगा। अब
तू निर्भय एवं निश्चित रहना। गुरुदेव, अपने मेरे भविष्य का रहस्य खोलकर मुझे
आशस्वत की आपने मेरे पर महान उपकार किया है। सुरसुन्दरी ने जमीन पर मस्तक
लगाकर पुनः पुनः वन्दना की। मुनिराज ने रत्नजटी की ओर सूचक दृष्टि से देखा।
रत्नजटि ने गुरुदेव की आज्ञा शिरोधार्य की।गुरुदेव, आपके गुणनिधि सुपुत्र ने
मुझे इस आश्वत तीर्थ की यात्रा करवा कर मेरे धर्मबंधु बने है..सुरसुन्दरी ने
कहा। और गुरुदेव, रत्नजटी का स्वर भावुकता से भीग रहा था,आपने जिसका नाम
गाया… वैसी महान शीलवत सुरसुन्दरी को अपनी धर्म बहन बनाकर अपने नगर मे मेरे
महल में ले जा रहा हूं.. हम सब बहन की भक्ति करके कुतार्थ होंगे..और समय आने
पर मै उसे बेनातट नगर मे छोड़ आऊँगा। दोनो ने गुरुदेव को भावपूर्ण वंदना की और
गुफा में से बाहर निकले। रत्नजटी का ह्रदय प्रसन्नता से छलक रहा था। रत्नजटी
को शब्द मिले नही मिल रहे थें, सुरसुन्दरी की प्रशंसा करे तो भी कैसे करें ?
दोनों विमान के पास आये..सुरसुन्दरी को आदरपूर्वक विमान में बिठाकर रत्नजटी ने
विमान को आकाश में ऊपर-ऊपर चढ़ाया..एवं जम्बूद्वीप की दीक्षा में गतिशील बनाया।
सुरसुन्दरी के समग्र चिततन्त्र पर नन्दीश्वर द्वीप छाया हुआ था। मुनिराज
के शब्द उसके कानों में रूपहली घण्टियों की भांति गूंज रहे थे। अमरकुमार
बेनातट में मिलेगा, तो अव्यक्त आनंद की अनुभूति में डूबी जा रही थी कि रत्नजटी
ने उसको मनोजगत में से बाहर निकाला: बहन एक महत्व की कहना चाहता हूं। कहिये ना
बेफिक्र मैंने तुझे से पहले भी कहा था मेरी चार रानियां है तुझ सी ननदी को
देखकर वे पगला जायेगी… तुझ से ढेर सारी बातें पूछेगी परन्तु यक्षद्वीप से
लेकर यहां तक की कोई भी बात उनसे कहना मत। क्यो ? जो हो चुका है.. उसे कहने
में एतराज क्या ? बहुत बड़ा एतराज है बहन ! तुझे नही पर मुझे, मेरी प्यारी बहन
तुझे मेरी रानियां दुखियारीन समझे यह सबसे बड़ा ऐतराज है। मेरी बहन को कोई
अभागिन समझे या उसकी तरफ दया करुणा या सहानुभूति के दृष्टिकोण से देखें, यह
मुझे जरा भी स्वीकार्य नही में इसे पसंद नही कर सकता। पर मेरी दुःख भरी कहानी
सुनने के साथ साथ उन्हें भी नमस्कार महामन्त्र के अचिन्त्य प्रभाव की बाते
सुनकर नवकार की महिमा पर श्रद्धा नही होगी क्या ? ‘वह श्रद्धा तो तू किसी अन्य
उपाय से भी पैदा कर सकेगी… तेरी निजी बाते सिर्फ में और तू दो ही जानते
है। निजी बाते छय कानो तक नही पहुँचनी चाहिए। वर्ना कभी बड़ा अनर्थ होने की
सम्भलना है..देख. में तुझे इस बारे मे एक कहानी सुनता हूं ‘कहो कहो समय भी
आंनद से जल्दी गुजर जायेगा।ओर तुम्हारी बात की गम्भीरता भी मेरे ख्याल मे जम
जायेगी।

आगे अगली पोस्ट मे…

राज को राज ही रहने दो – भाग 1
August 24, 2017
राज को राज ही रहने दो – भाग 3
August 24, 2017

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