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प्रित किये तो दुख होय पाठ 1 – भाग 4

अमरकुमार ने पाठशाला के दरवाजे बंद किये ताला लगाया और चल दिया अपनी हवेली की ओर।
अमर का मन व्यथित था। उसके सुन्दर चेहरे पर विषाद की बदली छायी थी। हवेली में पहुँचकर सीधा ही अपने अध्यनकक्ष में गया और पलंग में औंधा गिर पड़ा। सुरसुन्दरी नाराजगी, गुस्से और खिन्नता से भरी हुई पहुँची अपने महल में। माता रतिसुन्दरी को मिले बगेर ही सीधी अपने शयनखंड में जाकर पलंग में गिरी और फफक- फफक कर रोने लगी। आधी घटिका तक वह रोती रही।
आसुओ के साथ साथ उसके दिल का गुस्सा भी बाह गया उसका दिल हल्का हुआ। ओह आज मुझे क्या हो गया था?। मेरे अमर को मेने कितना सुना दिया । ओह ओह उसने मुझे पूछे बगेर मेरी सात कोड़ी लेकर मिजबानि भी मनाली तो उसमे कौनसा मेरा राज्य लुट गया था। मेरे हिस्से की मिठाई मुझे देते वक़्त वह कितना खुश था। मेने आज उसको जरासी बात के लिए नाराज कर दिया। उसके दिल को तोड़ दिया। सभी छात्रो के बिच उसका अपमान किया ।अरे कैसा भी हो पर वह पाठशाला का श्रेष्ठ विधार्थी है। उसकी चतुराई पर तो मै भी गर्व करती हुँ । मझे उसका बोलना अच्छा लगता है। उसका चेहरा प्यारा लगता है। उसकी चल अच्छी लगती है। उसकी हर एक बात मुझे पसंद है। और आज मेने उसे जहर से शब्द कह डाले । हाय धिक्कार हो मुझे।
अब ।अब वह मेरे साथ नहीं बोलेगा? मेरे सामने भी नहीं देखेगा? हा ! नहीं बोलेगा और मेरी ओर रुख करेगा । सुरसुन्दरी की आँखे छलकने लगी। वह फफक -फफक कर रो दी। मन ही मन बोलने लगी नहीं नहीं मै अमर से माफ़ी मांग लुंगी। वह मेरे सामने न देखे तो मै जीके भी क्या करू?। वो मुझसे नहीं बोलेगा तो मै खाना नहीं खाऊँगी ।वह मेरे पर गुस्सा करेगा तो करने दूँगी। उसे गुस्सा वह मुझे लताड़ेगा तो भी में यह सह लुगी। सुन लुंगी चुपचाप। मेरा अपमान करेगा तो भी कुछ नहीं कहूँगी उसे अब कभी भी, पर अमर के बिना में नहीं रह सकती। मेने तो उसे अपने मनमन्दिर का देव बना रखा हे । उसके बिना तो मै..।मुझे श्रद्धा हे मेरे अमर पर। मुझे नहीं भूल सकता। मेरी गलती वह भुल जायेगा। वह मुझे जरूर हँसकर बुलायेगा। हमारी मैत्री नहीं टूट सकती किसी भी कीमत पर। मै नहीं टूटने दूँगी हमारी दोस्ती को। हमारी दोस्ती तो सदा सदा के लिए है।।

आगे अगली पोस्ट मे पढे…

प्रित किये तो दुख होय पाठ 1 – भाग 3
March 31, 2017
प्रित किये तो दुख होय पाठ 1 – भाग 5
March 31, 2017

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