सुरसुन्दरी की हिरणी सी आँखो में आज प्यार नहीं था, आग जैसे बरस रही थी। उस आग ने मुझे भूलासा दिया मेरे प्यार को जला दिया। शीतल चाँद सा उसका गोरा मुखड़ा तपे हुए सूरज सा लाल हो गया था । मै तो उसके सामने ही नहीं देख सका ।उसके मीठे मीठे बोल आज जहर से हो गये थे । नहीं अब तो मै उसके साथ कभी नहीं बोलूगा और सुन्दरी भी अभिमानी है। वो भी शायद मेरे साथ नहीं बोलेगी।
चाहे न बोले । मुझे क्या? उसे गरज होगी तो आयेगी बोलने। मुझे उसे पुछकर ही उसकी सात कोड़ी लेनी थी। मेने बिना पूछे ली यह मेरी गलती। हो गयी पर क्या दोस्ती में भी पूछे बगैर वस्तु नहीं ली जा सकती क्या? वो मुझे बगैर पूछे मेरी किताबे नहीं लेती है?। मेरी लेखिनी नहीं लेती हे। मेने तो कभी उससे झगड़ा नहीं किया। मेने उसे कभी कुछ नहीं कहा।
राजकुमारी होकर सात कोड़ी के लिए मेरे साथ लड़ने लगी। उसके पिता के पास तो कितना बड़ा राज्य है। पैसे का तो पार ही नहीं है। वैभव कितना सारा है। पर उसके दिल में ओछापन कितना है। पर मै उसे छोडूगा नहीं। उसने मेरा जो अपमान किया है उसका पूरा बदला लूंगा। आज नहीं तो कल जिन्दगी में कभी भी मोका आने पर मै भी देखूँगा की वो किस तरह सात कोड़ी में राज लेती है।
कितनी शेरवि बधार रही थी। सात कोड़ी में राज ले लेती। आयी बड़ी राज लेने वाली। जब तक मै मेरे अपमान का बदला नहीं लुगा तब तक मुझे चेन नहीं आयेगा।।
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