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राज्य भी मिला, राजकुमारी भी!– भाग 7

दूसरी महत्व की बात सुन लो…!’ महाराजा का स्वर गुंजा । पूरी सभा खामोश हो
गयी ।
‘मै राजकुमारी गुणमंजरी की शादी कुमार विमलयश के साथ करने की घोषणा करता हु !’
प्रजाजन नाच उठे ! गुणमंजरी शरम से छुईमुई से हो उठी । दौड़कर जवनिका में चली
गई । अपनी माँ के उत्संग में चेहरा छुपाकर अपने भीतर उफनते–,उछलते खुशी के
दरिये को रोकने लगी ।
‘महाराजा, सचमुच राजकुमारी के लिए आपने काफी सुयोग्य वर की पसन्दगी की है…
राजकुमारी का महान पुण्योदय है… जिस कन्या का उत्कृष्ट पूण्य हो… उसे ही
विमलयश सा पति मिले !’
महामंत्री ने खड़े होकर महाराजा की घोषणा की अनुमोदन किया ।
महाराजा ने राजपुरोहित को सबोधित करते हुए कहा :
‘पुरोहितजी, राजकुमारी की शादी के लिए श्रेष्ट मूहर्त निकाल कर कल मुझे इत्तला
करना ।’
‘जैसी महाराज की आज्ञा…’
राजपुरोहित ने खड़े होकर महाराजा की आज्ञा को सर पर चढ़ाई ।
राजसभा का विसर्जन हुआ ।
विमलयश ने मृतुन्जय को गुफा में से धनमाल लाने को रवाना किया । साथ मे गाड़े
भेजे…. और सैनिक भी भेजे ।
महाराजा की आज्ञा लेकर विमलयश अपने राजमहल में आया ।
महल के द्वार पर ही मालती ने अक्षत से उसे बधाई दी…. स्वागत किया । विमलयश
ने प्रसन्न होकर अपने गले का किमति रत्नहार देकर मालती को सन्मानित किया ।
‘महाराजा, अब तो यह महल ‘राजमहल’ बन जाएगा… और मै महारानी की परिचारिका बन
जाउंगी ! ‘
‘तू तो अभी से सुनहरे ख्वाब देखने लगी री…., अभी तो…!’
‘अरे….कुमार अब तो क्या देर ? चट मंगनी पट शादी ! देखना कल ही राजपरोहित
शादी का मूहर्त बता देंगे ! अरे बाबा… अब देर काहे की ? वैसे भी मिया- बीवी
तो राजी ही है !’
‘चुप मर… बहुत ज्यादा बोलने लगी है ….. मालती आज कल तू !’
कुमार, मुझे डांटते हो वह तो ठीक है, पर हमारी राजकुमारी को कुछ भी कहा तो
खबरदार है !’
‘बड़ी आयी राजकुमारी वाली….’
और विमलयश की हँसी से महल खिलखिला उठा ।

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