अग्निशर्मा ने गुस्से भरी दृष्टि से राजमहल को देखा और तत्काल वहाँ से वापस लौट गया। उसी राजमार्ग पर से वह वापस लौटा कि जिस रास्ते से वह आया था। उसने राजा के लिए खड़ीं की हुई प्रशस्त भावों की सुंदर इमारत टुकड़े-टुकड़े होकर मिट्टी में मिल गई थी। और अब वहां पर अशुभ कुत्सित और अति उग्र के विचारों के भूत भटकने लगे थे। बचपन से ही इस राजा को मेरे प्रति द्वेष है। वैरभाव है। कल्पना भी ना कि जाए वैसी शत्रुता है। इनका बरताव कितना गूढ़ है। तीन-तीन महीने से वह मेरे पास, कुलपति के पास और सभी तापसौ के पास कितना मीठा-मीठा बोलता है। भक्ति व सेवा का कैसा स्वांग रचाता है ? निंरा-दंभ और केवल माया कर रहा है। इस तरह मेरे पारणे चुका चुका कर वह मुझे मृत्यु के मुँह में धकेलने का क्रूर खिलवाड़ कर रहा है। मै भी इसे देख लूँगा।
विचारों की आंधी के थपेड़े खाते हुआ अग्निशर्मा के द्वार पर आ पहुंचा। क्रोध व अभिमान ने उसे जकड़ लिया था। परलोक और परमात्मा की भावना राख हो गईं थी। धर्मश्रद्धा से वह भृष्ट हो चुका था। सारे दुःखो की जड़रूप अमैत्रि उसके ह्रदय मे पनपने लगी थी। देह को अत्यन्त पीड़ा देनेवाली क्षुधा से वह उत्पीडीत था। राजा गुणसेन के प्रति तीव्र कषाय तीव्र द्वेष उसके अंग अंग में फड़क रहा था। मु्ढ़ हो गया था अग्निशर्मा उसने मन ही मन संकल्प किया लाखो बरस तक मैंने जो व्रत पालन किया है घोर तपस्या की है उसका यदि फल मुझे मिलने वाला हो तो मुझे एक ही फल चाहिए। जन्म जन्म तक मे इस दुष्ट गुणसेन को मारने वाला होऊँ। उसके प्राण छिनने की मुझे ताकत मिले मेरे हाथों इसका वध हो। दांत किटकिटा कर वह स्वगत बोलता है। स्वजनों का प्रिय और शत्रुओ का जो अप्रिय नही कर सकता है उसका जन्म ही व्यर्थं है। यह राजा मेरा शत्रु है। इस पापी दुष्ट राजा को मै जिन्दा ही जला डालूँगा। उसका नामोनिशा मिटा दूँगा। इसके पास यदि राज्य सत्ता की भैतिक शक्ति है तो मेरे पास तपस्या की दिव्य ताकत है। मेरी शक्ति के बल पर मै इसे तहस नहस कर डालूँगा। बर्बाद कर दूँगा इस शैतान के अवतार से राजा को। मुझे बस मौका मिलना चाहिए। काँपते हुए दोनो हाथों की मुठी भींच कर आकाश में मुठीयो को उछलता हुआ।तीव्र गति से चलता हुआ अग्निशर्मा तपोवन मैं प्रवेश कर, सीधा ही अपने स्थान पर जाकर बैठ गया। न तो कुलपति के पास गया न ही किसी अन्य तापस से मिला। अशांत उददगिन और संतप्त अग्निशर्मा का आर्त्तध्यान औऱ रौद्रध्यान में बदल चुका है।
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